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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

रविवार, 10 जुलाई 2016

चार घंटे यूरोपीय ट्रेन में

ट्रेन छूटने के समय से पांच मिनट पहले आई और समय पर छूट गई। आने और जाने के समय कोई ईंजन की सीटी की आवाज नहीं। पश्चिम में आवाज से काफी परहेज किया जाता है। इस ट्रेन को दो कंपनियां सीडी (चेस्के ड्राही) और ओबीबी (यह विएना की है) मिलकर चलाती हैं। ट्रेन अपने नंबर से जानी जाती है। इस ट्रेन का नाम 75 है। 

कौन सा फर्स्ट क्लास, कौन सा सेकेंड क्लास और कौन सा रेस्तरां सब पहले से फिक्स है। मेरी सीट के ऊपर नंबर के साथ स्क्रीन पर लिखा है यह प्राग से विएना के लिए है। दूसरे यात्रियों की तरह मैंने भी अपनी जैकेट उतारकर खूंटी पर टांग दी। सीट के नीचे ही छोटा कूड़ा गिराने का स्थान है। 

पैर से उसे खोलना पड़ता है। बड़ा कूड़ा टॉयलेट के पास के कूड़ेदान में गिराया जा सकता है। आधी सीटें खाली हैं। परसों जिस बस में न्यूरमबर्ग से प्राहा या प्राग आया था उसमें लगभग 100 की क्षमता थी लेकिन यात्री दस ही थे।

डर था कि शायद कंडक्टर क्रेडिट कार्ड मांगेगी जो कि बर्लिन में खो गया। लेकिन उसने केवल पासपोर्ट मांगा। इस ट्रेन में क्रेडिट कार्ड की जरूरत नहीं होती। बर्लिन से न्यूरमबर्ग आते समय क्रेडिट कार्ड मांगा था (वह जर्मनी की राजकीय कंपनी डीबी थी)। 

वे लोग पासपोर्ट को नहीं मानते। यह उनका नियम है। ऑनलाइन टिकट पर ही साफ लिखा था। मैंने कहा कि मुझे पता है, लेकिन अब खो गया तो क्या करेंगे, मैं तो आपके इनफॉर्मेशन पर पूछकर चढ़ा हूं। कंडक्टर समझी नहीं। पास बैठी युवती ने जर्मन में बताया तो समझी और मान गई। 

बर्लिन से न्यूरेमबर्ग के बीच तीन कंडक्टरों ने टिकट चेक किया था। सभी किसी एयरहोस्टेस की तरह नम्र व्यवहार वाली थीं। हाथ में पकड़ी मशीन से टिकट का बारकोड स्कैन कर लेती थीं, लेकिन बार-बार नहीं।

यह फर्स्ट क्लास है। फर्स्ट क्लास में आधे लीटर की पानी की बोतल और अखबार फ्री मिलता है। अंग्रेजी अखबार इनके पास नहीं है। वाई-फाई भी नहीं है हालांकि दूसरी ट्रेनों में है। कहते हैं इसमें भी हो जाएगा। कुछ सीटें उन यात्रियों के लिए हैं जो 10 साल से नीचे के बच्चों के साथ यात्रा कर रहे होते हैं। 

ये सीटें हमेशा के लिए निश्चित हैं। वहां उनके खेलने के लिए एक गेम दिया जाता है और साथ में खेल के नियम भी। बच्चों के लिए सिनेमा का प्रावधान भी है। अक्षम यात्रियों के लिए व्हीलचेयर ले जाने लायक अलग से सीट बना दी जाती है। फर्स्ट क्लास में एक बिजनेस क्लास भी है जिसमें एक पेय और पचास क्राउन (2 यूरो) का कूपन दिया जाता है, जो इच्छा हो मंगा लो। 

पांव के लिए ज्यादा स्पेस। ट्रेन 155 की गति से चल रही है। सामने स्क्रीन पर सबकुछ आता रहता है, आप किस ट्रेन में किस वैगन में बैठे हैं, ट्रेन की गति, आने वाले स्टेशन (स्टेशनों) का समय और नाम। बाहर आज धूप निकली है। शायद फोटोग्राफी अच्छी कर पाना संभव हो। आप ट्रेन में साइकिल भी ले जा सकते हैं। साइकिल और प्राम रखने के लिए प्रावधान हैं।

रेस्तरां के स्टाफ आर्डर लेने आते हैं और आप खाने के सामान का मेनू देखकर आर्डर दे सकते हैं। यानी हवाई यात्रा की तरह। ट्रेन में एक-दो डिब्बे शांत डिब्बे होते हैं उसमें बैठने वालों को अपने मोबाइल को स्विच ऑफ करना पड़ता है, फोन करने या रिसीव करने से परहेज करना पड़ता है, म्यूजिक नहीं बजा सकते हेड फोन लगाकर भी और बातें धीमी आवाज में करनी होती है। वैसे भी यहां हर कोई धीमी आवाज में ही बातें करता है।

बाहर सरसों के खेत हैं और फूल खिले हुए हैं। क्रिसमस ट्री बहुतायत में उगे हुए हैं जिन्हें हमारे यहां काफी प्रीमियम दिया जाता है। कहीं भी मनुष्य या अन्य कोई भी जीव जंतु दिखाई नहीं देता। 

पास बैठी कैलिफोर्निया की महिला ने कहा कि उसे यात्रा में दिक्कत होती है, कोई खाली सीट हो तो बताना। वह शायद सोएगी। होस्ट (वेटर) ने कहा कि मैं देखकर बताता हूं। थोड़ी देर बाद महिला अपने पति के साथ दूसरी किसी सीट पर चली गई।

11.47 बज गए और पहला स्टेशन पार्डुबाइस आ गया। यह कोई औद्योगिक शहर लगता है। छोटा-सा। प्राग की आबादी 12 लाख है। अभी चेक गणराज्य ही चल रहा है। क्योंकि स्टेशन के लिए हालविना नाडराजी लिखा हुआ आ रहा है।

गार्ड ने हल्की सी सीटी बजाई, ऑटोमैटिक दरवाजे बंद होने का पीं-पीं पीं-पीं संकेत हुआ और गाड़ी 11.49 पर चल पड़ी। प्लेटफॉर्म खाली पड़े हैं। बाहर धूप निकल आई है। अगला स्टेशन 12.22 पर सेस्का ट्रेबोवा है। बाहर का दृश्य उबाने वाला है। खेत दिख रहे हैं लेकिन खेतिहर कहीं नहीं। गति वही 160। 

रास्ते के स्टेशनों पर कोई झंडी दिखाने वाला नहीं खड़ा रहता। दरअसल कोई नहीं रहता, न स्टाफ, न यात्री। हरियाली लगभग आ गई है। लेकिन कहीं भी फूल वाले वृक्ष नहीं हैं। हां कुछ छोटे वृक्ष हैं सफेद फूलों वाले। वनस्पति की विभिन्नता हमारे यहां की तरह नहीं दिखाई देती। 

असम में तो इस समय लाल गुलमोहर और बैंगनी रंग के एजार फूल, और पीले अमलतास के फूल खिल गए होंगे। यहां लाल रंग को मिस कर रहा हूं। कुछ दिन रहना पड़ जाए तो नजारा काफी उबाऊ हो जाएगा। कुछ खेत जुते हुए हैं, बुवाई के लिए तैयार। कुछ में छोटी पौध उग आई है।

यहां शहर के पार्कों में भी छोटी दूब या घास के बीच सुंदर पीले-पीले फूल उगे हुए होते हैं। कोई घास पर नहीं चलता इसलिए वे बने रहते हैं। ...वाह, अब तक की यात्रा में जंतु के नाम पर अभी-अभी कुछ बकरियां चरती हुई दिखाई दीं। लेकिन चार-पांच ही। 

यह किसी गांव या कस्बे को पार कर रहे हैं लेकिन कहीं इंसान नाम का जीव दिखाई नहीं दिया। पहली बार एक रेलवे फाटक दिखाई दिया जो ट्रेन के आने से पहले अपने-आप बंद हो जाता है। छोटे से गांव के सर्विस रोड के लिए यह काफी है।

रेलवे ट्रैक थोड़ी देर के लिए एक छोटी-सी नदी के साथ-साथ गुजर रही है। एक और चीज यहां आपको नहीं मिलेगी वह है बिखरा हुआ प्लास्टिक। शहरों में सिगरेट के टुकड़े हर कहीं बिखरे मिल जाते हैं, क्योंकि सिगरेट पीने के बाद कूड़ेदान में गिराना मना है। कोई नहीं गिराता। 

कल रास्ते किनारे की एक दुकान में बर्गर खाने के बाद एक अन्य व्यक्ति (शायद अरब या तुर्क) ने बड़ी तत्परता से कहा यहां – यहां। यानी इस कूड़ेदान में कागज गिरा दें। क्या मेरे भारतीय होने के कारण उसे डर था कि मैं नीचे ही गिरा दूंगा। उसने मुझे न-मस्ते भी कहा। मैंने कुछ नहीं कहा था, शायद किसी शो का दलाल होगा।

 हमारे यहां हम किसी अनजान व्यक्ति के साथ ज्यादा बात नहीं करते। यहां किसी अनजान व्यक्ति से आंखें मिलाते ही - जैसे होटल की रिसेप्शनिस्ट, या लिफ्ट में पहले से आ रहा कोई व्यक्ति, या रेस्तरां में आपकी मेज पर पहले से बैठा हुआ कोई ग्राहक - गर्मजोशी के साथ मुस्कुराकर हलो कहते हैं। ऐसा नहीं करना अच्छा नहीं माना जाता।

एक स्टेशन पार हुआ है, दूर स्टेशन के पास तीन चार लोग दिखाई दिए और एक महिला प्राम पर अपने बच्चे को ले जा रही है।

हमारे लोगों को आश्चर्य होगा कि आदमी कहां छिपे रहते हैं। न्यूरमबर्ग के उपनगर न्यूरमबर्ग स्टाइन, जहां मैं ठहरा था, में जब रात आठ-नौ बजे बाहर का नजारा लेने के लिए निकला तो सचमुच एक भी आदमी दिखाई नहीं दिया। मैं एक तरह से घबराकर वापस अपने फ्लैट में लौट आया। 

उपनगर में एक इटालवी रेस्तरां ला कुलटुरा दिखाई दिया था, जिसके बारे में मेरी होस्ट ने बता दिया था कि वह महंगा होगा। ठंड में अकेले घूमना और रास्ता भटक जाएं तो पूछने के लिए कोई नहीं, सचमुच घबराहट होती है। 

लो 12.23 हो गए और चेस्का ट्रेबोवा आ गया। गाड़ी एक मिनट विलंब से आई है। और 12.24 पर चल पड़ी। अगला स्टेशन ब्रनो 1.22 पर है। बाहर प्लास्टिक का कूड़ा गिराने की जगह दिखाई दी है। तीन-चार मशीनें उस पर काम कर रही हैं। पता नहीं क्या काम।

यह कोई अच्छा-खासा शहर पार हो रहा है। एक हाइपरमार्केट पार हुआ है। शहर के बाहर गांव शुरू होता है। खेतीबाड़ी की मशीनें हर घर के बाहर पड़ी दिखाई दे रही हैं। हर घर के साथ छोटी-सी बगीची है जिसमें शायद सब्जी उगाते होंगे। 

सर्दी से बचाने के लिए और एक खास तापमान पर रखने के लिए ग्रीन हाउस जैसा बनाया रहता है। जैसे हमारे यहां ठंडक बनाए रखने के लिए कोई-कोई ऐसा करता है। पटरी के साथ-साथ एक मानव निर्मित छोटी सी नहर चल रही है। अच्छी धूप निकल आई है। मैंने थोड़ी फोटोग्राफी कर ली।

एक और रेलवे फाटक पार हुआ। छोटे से शहर के बीच। यानी यहां भी रेलवे फाटक हैं। मेरे एक मित्र ने बताया था कि यहां रेलवे फाटक नहीं होते। हालांकि सभी स्वचालित हैं। अरे हां, पार हो रहे स्टेशन के बाहर लाल टोपी पहने स्टेशन का कर्मचारी दिखाई दिया है।

उसने शायद सबकुछ ठीक होने का सिगनल दिया होगा। लेकिन हाथ में झंडी-वंडी नहीं थी। हमारी बोगी अंतिम है इसलिए दिखाई नहीं देता कि वह क्या करता है। वह बस वापस अंदर जाता हुआ दिखाई देता है।

ब्रनो भी आखिर 1.23 पर आ ही गया। यह स्टेशन काफी पुराना और साधारण है। कम से कम बाहर से तो हमारे यहां के जैसा ही। स्टेशन का मकान भी जराजीर्ण है। बाहर शहर में नई शैली की बहुमंजिला इमारते हैं। पारंपरिक शैली की टेराकोटा टाइल्स की तिकोनी छत वाले मकान यहां गायब हो गए। 


सबलोग शांत बैठे हैं। पास वाले दंपति धीमी आवाज में बात कर रहे हैं और पुस्तक पढ़ रहे हैं। आगे की सीट पर कोरियाई बच्चे कलम कागज से पहेली पूरी करने में व्यस्त हैं। एक बच्ची डायरी लिख रही है। बाहर कोई दिलचस्प दृश्य दिखाई नहीं दे रहा। न ही कोई आदमी। यदि कॉफी का ऑर्डर देता हूं तो तीन-चार यूरो खर्च हो जाएंगे। विएना आने में पूरे दो घंटे बाकी हैं। इससे अच्छा है मैं भी थोड़ा सो लेता हूं।

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