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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

गैंग रेप पर संता बंता



संता - रेप के लिए लड़कियां दोषी हैं जो भड़काऊ कपड़े पहनती हैं। उन्हें तन ढकने वाले कपड़े पहनने चाहिए।

बंता - क्या उन दिनों रेप नहीं होते थे जब औरतें घूंघट में रहती थी। क्या बुर्का पहनने वाले देश औरतों के प्रति आदर के लिए जाने जाते हैं।

संता - कुछ भी हो, सिनेमा और टीवी और भड़काऊ विज्ञापन रात-दिन लोगों की (मर्दों की) भावनाएं भड़काता रहता है। इन पर अंकुश लगना चाहिए।

बंता - क्या रेप इतनी आधुनिक चीज है कि यह सिनेमा और टीवी के आने के बाद ही आई है। एक बात बताओ जिन देशों में आधुनिक सभ्यता यानी तुम्हारी भाषा में तन उघाड़ू सभ्यता हमसे पहले ही आ गई थी वहां तो बलात्कार की घटनाएं इतनी ज्यादा नहीं सुनाई देतीं। हमारे देश में, पाकिस्तान में, बांग्लादेश में, नेपाल में ही क्यों ऐसी घटनाएं ज्यादा घटती हैं।

संता - तुम्हें पता होना चाहिए बंता, आजकल एक और बीमारी आ गई है। इंटरनेट नाम है इस बीमारी का। इसमें लोग घर बैठे ही पोर्न देखते हैं। ऐसे मानसिक प्रदूषण के बाद रेप जैसे कांड नहीं होंगे तो क्या होंगे।

बंता - दिल्ली में बस में गैंग रेप करने वाले अशिक्षित और गरीब श्रेणी के छोकरे थे, उनसे यह उम्मीद नहीं है कि वे इंटरनेट पर पोर्न फिल्में देखते होंगे। पोर्न ज्यादातर मध्यवर्ग के छोकरे देखते हैं और देश में रेप की ज्यादातर घटनाओं के पीछे मध्यवर्ग के लड़के नहीं पाए जाते। यही बात अमरीका पर लागू है। वहां रेप की ज्यादातर घटनाओं के पीछे काले गरीब अशिक्षित लड़के पाए जाते हैं, गोरे लड़कों का नाम बलात्कार की घटनाओं में कम ही आता है।

संता - तो क्या तू कहता है कि लड़कियां इसी तरह बेहयाओं के से कपड़े पहनकर घूमें, कुछ अपराधी किस्म के लोग अपनी भावनाओं पर काबू खो दे और दिल्ली जैसी घटनाएं होती रहें।

बंता - पहली बात तो यह है कि दिल्ली हो या पूना हो या बंगलोर - हाल में रेप की जितनी भी घटनाएं सामने आई हैं उनमें कहीं भी लड़की की पोशाक पर दोषारोपण नहीं किया जा सकता।

संता - आखिर वे अंधेरा होने के बाद बाहर तो घूम रही थीं।

बंता - यानी तुम यह कहना चाहते हो कि औरतें अंधेरा होने के बाद घर से न निकलें, दिन में भी निकलें तो सूनसान रास्तों पर न जाएं, अपनी ही यूनिवर्सिटी के परिसर में सूनसान जगह पर न जाएं, घर में ही देखभाल कर दरवाजा खोलें।

संता - हां और जहां तक हो सके दिन में भी घर के बाहर अकेली न जाए, किसी पुरुष के साथ ही बाहर निकले। हमारी माताजी को हमने कभी नहीं देखा अकेली घर से बाहर निकलते हुए।

बंता - यानी तुम्हारे जैसे लोग चाहते हैं कि महिलाएं कोई काम धंधा न करे, रात को घर के बाहर न जाए, पढ़ाई के लिए भी सिर्फ दिन में ही बाहर निकले, वो भी किसी के साथ। क्योंकि किसी मनचले का दिल मचल सकता है और मौका मिलते ही उसे अपना शिकार बना सकता है।

संता - और कपड़े भी ढंग के पहने..

बंता - नारी के कपड़ों के बारे में भी तुम पुरुष लोग ही निर्णय करना चाहते हो, क्योंकि क्या पता किसी बस में किसी बेचारे पुरुष को रेप करने की इच्छा हो जाए..तब वह किसी अल्पवसना नारी को ही तो अपनी हवश का शिकार बनाएगा। आखिर हम कैसे समाज में रह रहे हैं। हम बीमारी का इलाज करने की बजाय बीमारी के शिकार को ही दोषी ठहरा रहे हैं। उसे ही नसीहत दे रहे हैं।

संता - आखिर तुम कहना क्या चाहते हो। बात को उलझाओ मत..

बंता - बात सीधी सी है कि अपराध करने वाले को जब सजा मिलने लगेगी तभी अपराध कम होंगे। दंड और पुरस्कार - यह किसी भी समाज में अनुशासन बनाए रखने के लिए समय सिद्ध मंत्र है। ज्यादा बौद्धिक विमर्श में जाने की आवश्यकता नहीं है। हमारे देश की औरतों की पोशाक काफी शालीन है। जिन देशों में कम से कम वस्त्र पहनने का चलन चल पड़ा है, जहां बड़ी मात्रा में पोर्न फिल्में बनाई जाती हैं, पोर्न साहित्य छापा जाता है, और ये सारे पश्चिमी देश ही नहीं हैं, वहां क्या हमारे यहां की तरह कोई भी इस तरह की दरिंदगी करने का साहस कर सकता है। वहां कानून का भय है, वहां के एक पुलिस वाले का रौबदार चेहरा देखते ही अच्छों अच्छों को पसीना आ जाता है। सीधी सी बात है, पुलिस और कानून का भय एक आधुनिक समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है। जो मामले अदालतों में जाते हैं उनमें जल्दी फैसला आए इसकी व्यवस्था करनी होगी। यह सब एक दिन में नहीं होगा।

संता - इसके लिए क्या करना होगा।

बंता - दरअसल पुलिस व्यवस्था को सुधारने और अदालतों में मामले जल्दी निपटे इसे हाल के वर्षों में किसी भी सरकार ने वरीयता नहीं दी। जबकि यह किसी भी सरकार का प्राथमिक काम है। हाल के वर्षों में सरकारों का ज्यादा ध्यान जनकल्याण के कामों में - जैसे ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, गरीबों के रोजगार योजाना, गरीबों के लिए आवास योजना, सर्वशिक्षा अभियान आदि - लगा है।

संता - तो क्या ये सब काम फिजूल हैं।

बंता - मैं नहीं कहता कि ये काम फिजूल हैं। लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी है उसी अनुपात में पुलिस और न्याय व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी तो खर्च करना जरूरी है। उदाहरण के लिए, सभी राज्यों में पुलिस वालों के पद खाली पड़े हैं, पुलिस आधुनिकीकरण का काम तेजी से नहीं हो रहा है, फोन करते ही पुलिस हाजिर हो जाए ऐसी व्यवस्था अभी भी नहीं हो पाई है जैसी आधुनिक देशों में है...

संता - तभी तो मैं कह रहा हूं जब तक ऐसी व्यवस्था नहीं हो जाती, हमारी युवतियों को संयत पोशाक पहनना चाहिए और रात को घर से बाहर....

बंता - यानी तू अपनी जिद पर कायम है।

संता - अच्छा बंता, एक बात बता, बलात्कारी को फांसी देने की मांग पर तेरा क्या कहना है।

बंता - देखो बलात्कार हत्या या आतंकवादी हमले जैसे अपराध इस मायने में भिन्न है कि यह कोई आदत से मजबूर होकर नहीं करता, बल्कि पाशविक भावनाओं के वशीभूत होकर किसी खास क्षण में कर बैठता है। इसलिए यदि बलात्कार की सजा फांसी कर दी जाए, या फांसी से भी बड़ी सजा जैसा कि कुछ लोग कह रहे हैं (लेकिन मेरी समझ में नहीं आता ऐसी सजा क्या हो सकती है) दे दी जाए तो इससे रेपिस्टों में भय का संचार होगा और ऐसी घटनाओं में कमी आएगी मुझे नहीं लगता। क्योंकि आप सजा कुछ भी दे लीजिए, यदि कानून की वर्तमान धीमी चाल बरकरार रही और सौ में से सिर्फ एक प्रतिशत को सजा दी गई तो इससे किसी भी किस्म के अपराधियों में भय का संचार नहीं होगा। भय का संचार तभी होगा जब सौ में से निन्यानबे को सजा मिले और गलती से एक छूट जाए। हमारे यहां होता यह है कि जो एक प्रतिशत पकड़े भी जाते हैं वे भी कानून के विभिन्न सूराखों से होकर बरी हो जाते हैं।

संता - तो क्या इस समय देश भर में भावनाओं का जो उबाल आया हुआ है वह यूं ही जाया हो जाएगा।

बंता - इस देशव्यापी गुस्से को चैनलाइज करके इस ऊर्जा को काम में लगाया जाना चाहिए। हमें छेड़छाड़ के विरुद्ध एक वातावरण बनाना होगा, क्योंकि जो समाज महिलाओं के साथ छेड़छाड़ को बर्दाश्त करता है उसी समाज में दिल्ली गैंग रेप जैसी घटनाएं होती हैं।

संता - यह तो भाषणबाजी हो गई, ठोस काम क्या होना चाहिए।

बंता - ठोस काम के रूप में आंसू गैस छोड़ने वाले मिनी कैनिस्टर के व्यवहार के बारे में सोचा जा सकता है जो महिलाओं को उपलब्ध हों। जैसे ही किसी महिला को लगे कि उसके साथ बदसलूकी हो सकती है वह इस कैनिस्टर का व्यवहार कर सकती है जिससे निकलने वाली गैस संभावित अपराधियों को कुछ समय के लिए अंधा कर देगी। महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को जघन्य अपराध की श्रेणी में डाला जाए। ऐसा करने से नियमों के अंतर्गत यह जरूरी हो जाएगा कि ऐसे अपराध की तहकीकात और उसकी प्रगति की कोई वरिष्ठ अधिकारी निगरानी करेगा।

संता - बात तो सोचने लायक है, बंता।

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