मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

गुरुवार, 15 जून 2017

उत्तरी थाईलैंड – जनजातीय जीवन की एक झलक

उत्तरी थाईलैंड कई जनजातियों की निवासभूमि है। भारत के नगालैंड से जो भूमि शुरू होती है वही बर्मा के पहाड़ी हिस्से से होती हुई उत्तरी थाईलैंड तक जुड़ी हुई है। नक्शे में देखें तो नगालैंड, उत्तरी बर्मा, दक्षिणी चीन, लाओस और उत्तरी थाईलैंड बिल्कुल पास-पास दिखाई देंगे। हालांकि यह सारा इलाका पहाड़ियों और घाटियों से भरा हुआ है। 

असम पर 600 साल तक राज करने वाली आहोम जाति के लोग उत्तरी बर्मा, उत्तरी थाईलैंड और दक्षिण चीन के इसी इलाके में रहने वाली किसी शासक जाति के लोग थे और विद्वानों का मानना है कि वे बर्मा की शान जाति से काफी मिलते-जुलते हैं और आहोम लोगों से ही मिलते-जुलते लोगों का इस इलाके में जगह-जगह राज था। ऐसी ही एक जनजाति है मोंग (Hmong)। 

चियांग माई के आसपास के राज्यों में ये लोग बसे हुए हैं। अब इनकी संख्या थाईलैंड में करीब 56 हजार है। उत्तरी थाईलैंड में रहने वाली अन्य जनजातियां हैं – कारेन, काचिन, लाहु, लिसु, मिएन, म्लाब्री, मोकेन, अखा आदि। चियांग में कई म्यूजियम हैं जहां एक-एक जनजाति के बारे में काफी जानकारी संगृहीत करके रखी गई है। थाईलैंड, चीन, लाओस और विएतनाम में विभिन्न जनजातियों के कुनबों को उनकी वेशभूषा के आधार पर पुकारने का रिवाज है। 

जैसा मोंग जनजाति के अलग-अलग कुनबों को सफेद मोंग, काला मोंग, हरा मोंग आदि कहकर पुकारा जाता है। यह उनकी वेशभूषा के रंग और उस पर किए गए कढ़ाई के काम के आधार पर होता है।

हमारा उत्तरी थाईलैंड के जिस राष्ट्रीय पार्क से होकर ट्रैकिंग करने का कार्यक्रम था वह इसी मोंग जनजाति का इलाका है। चियांग माई से हमारे साथ टूरिस्ट कंपनी की ओर से कारेन जनजाति का गाइड आया था। लेकिन सरकारी नीति के अनुसार इस जंगल से होकर जाने के लिए एक मोंग गाइड साथ होना जरूरी है। कारेन गाइड, कुंग ने बताया कि मैं भी सबकुछ जानता हूँ, जिन पेड़ों और फूल-पत्तियों के बारे में वह बताएगा उनके बारे में मुझे भी उतनी ही जानकारी है। लेकिन पॉलिसी तो पॉलिसी है। बस क्या कहें।

हमारा मोंग गाइड वासे बिल्कुल सीधा-सादा इंसान था। हमारे यहां के किसी नगा गांवबुढ़ा (गांव का मुखिया) से बिल्कुल मिलता-जुलता। अंग्रेजी का एक शब्द भी नहीं जानता था। मैंने उससे उसका नाम पूछा तो वह कुछ समझा नहीं। साथ में उसकी अपनी पारंपरिक दाव थी। कारेन गाइड कुंग भी अपनी कारेन दाव से लैस था। दाव इन जंगलों में हमेशा साथ रहने और साथ देने वाली चीज होती है। 

अपने यहां नगालैंड की तरह। बाद में जंगल में चलते वक्त उनलोगों ने दिखाया कि किस तरह प्यास लगने पर यदि साथ में पानी न हो तो एक खास केले के पेड़ को तने से काट लिया जाता है और उसके अंदर के कोमल तने में पानी मिल जाता है। हमने भी वह पानी चखा।

हमें वासे के साथ बातचीत कारेन गाइड कुंग के माध्यम से करनी पड़ती थी। कुंग उसकी बात को हमारे लिए अंग्रेजी में अनुवाद करके बताता था। मैंने पूछा कि क्या यहां भी गावों में गांव बुढ़ा की प्रथा है। वासे ने जो बताया उससे आभास मिला कि नगालैंड, बर्मा, दक्षिणी चीन, लाओस और इस उत्तरी थाईलैंड में प्रथाएँ आपस में काफी मिलती-जुलती हैं। यहां भी गांवबुढ़ा हैं जिन्हें सरकार से मान्यता प्राप्त है। 

मोंग जनजाति के लोग ऊंचे मचान पर नहीं रहते। नीचे जमीन पर ही रहते हैं। लेकिन लाहु, लिसु आदि कई जनजातियां हैं जो लोग जमीन से थोड़ा ऊंचा मचान बनाकर रहती हैं। मचान के नीचे उनके मवेशी रहते हैं और वे ऊपर से मवेशियों की निगरानी करते रह सकते हैं। असम की कई जनजतियों में भी मचान बनाकर रहने की प्रथा है।

जंगल की ट्रैकिंग जहां से शुरू होती है वहां एक छोटा-मोटा बाजार है। कुंग ने बाजार से कुछ स्ट्राबेरी और केले ले लिए। यहां स्ट्राबेरी की खेती नई-नई शुरू हुई है। मैंने सोचा कि कुंग अपने घर ले जाने के लिए खरीदारी कर रहा है, लेकिन बाद में वे स्ट्राबेरी और केले हमें ही जंगल में खाने को मिले। स्ट्राबेरियां देखने में जितनी सुंदर थीं खाने में भी उतनी ही मीठी थीं। चियांग माई हवाई अड्डे पर बाद में देखा कि हर चीनी युवती के हाथ में स्ट्राबेरियों का तीन किलो का एक-एक पैक था। हम चूक गए।

बाजार में एक स्थान पर निशानेबाजी होती है। मोंग जनजाति का पारंपरिक धनुष और तीर था और सामने निशाना लगाने के लिए संतरा, और दूसरे स्थानीय नींबू लटके हुए थे। एक व्यक्ति को तीन बार निशाना लगाने के लिए दिया जाता है। मैंने अपने जर्मन मित्र हेनिंग को चिढ़ाया कि तुम तो काफी बंदूक चला चुके हो, तुम्हारा निशाना सही होना चाहिए। 

उसके तीनों निशाने गलत लगे। इसके बाद मैंने हाथ आजमाया। सोचा कि जब हेनिंग का यह हाल है तो मेरा तीर तो कहां का कहां जाएगा। पहला निशाना कुछ वैसा ही हास्यास्पद प्रयास था। हमारे गाइड ने बताया कि किस तरह तीन बिंदुओं को आपस में मिलाकर निशाना लगाना है। और आश्चर्य, मेरा तीर संतरे के अंदर था। हालांकि यह मामूली सी बात थी लेकिन इससे पहाड़ पर चढ़ने का मेरा उत्साह बढ़ गया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें