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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

शुक्रवार, 16 जून 2017

मोंग युवक को गुस्सा क्यों आता है


जंगल में काफी दूर तक गाड़ी और मोटरसाइकिल जा सकती है। हमें पार कर एक मोटरसाइकिल वाला आगे बढ़ गया। उसके झोले में एक मुर्गा था। वासे ने वहां जंगली मुर्गा पकड़ने की विधि के बारे में बताया। ये लोग अपना पालतू मुर्गा जो किसी डोर से बंधा होता है, जंगल में छोड़ देते हैं। मुर्गा जब जंगल में जाकर कुकड़ूकू बोलता है तो जंगली मुर्गे उसके पास आ जाते हैं और उसके साथ झगड़ने लगते हैं। 

इस झगड़े के बीच मुर्गे का मालिक अचानक प्रकट होता है और बड़ी चालाकी से जंगली मुर्गे को अपने झोले में डालकर चलता बनता है। यह भी जंगल के लोगों के रोजगार का एक साधन है।

हम धीरे-धीरे चढ़ाई चढ़ रहे हैं। रास्ते पर ही कटे हुए दो डंडे रखे थे, वासे ने वे डंडे हम दोनों को दे दिए। हेनिंग हमेशा हाइकिंग करता रहता है, उसे सहारे के लिए डंडे की जरूरत नहीं। वृक्षों पर कहीं-कहीं अंकों के बोर्ड लगे हैं। ये सेना वालों के संकेत हैं। वे इस रास्ते पर रोजाना ट्रैकिंग के लिए आते हैं। 

पास ही रास्ते के किनारे काफी दूर-दूर तक बड़े-बड़े पत्थर रखे मिलते हैं। इनकी कहानी इस इलाके में अफीम की खेती से जुड़ी हुई है। यह चियांग माई प्रदेश थाईलैंड के अधीन आने के बाद थाईलैंड के राजा ने अफीम की खेती बंद कराने के लिए काफी मशक्कत की। इसी का एक भाग यह था कि पत्थरों को हटाकर एक जगह कर दिया जाए ताकि जिन स्थानों पर पहले पत्थर थे और आम चीजों की खेती संभव नहीं थी वहां साधारण मोंग लोग साधारण चीजों की खेती कर सके। उत्तरी थाईलैंड, लाओस और बर्मा की सीमाओं का संधिस्थल - यही वह इलाका है जिसे अफीम की खेती और अवैध हथियारों के व्यवसाय के कारण सुनहरा त्रिभुज या गोल्डन ट्रैंगल का नाम दिया गया है।

आगे चलकर देखा एक पहाड़ी झरने को रोककर बांध बनाया गया है। हालांकि अभी पानी नहीं है। बारिश जुलाई से शुरू होती है। इस झरने को रोकने से आसपास की पूरी जमीन की सिंचाई हो जाती है और खेती अच्छी होती है। इन्हें मेओ चेकडेम कहा जाता है। मेओ मोंग जनजाति का ही दूसरा नाम है। 

कुंग बताता है कि मेओ नाम में हिकारत का भाव है। इसलिए मोंग लोग अपने आपको मेओ कहे जाने पर गुस्सा हो जाते हैं। जैसे, कारेन लोगों को थाई लोग हिकारत से कारेयानी कहते हैं। यहां भी वही असम और पूर्वोत्तर की कहानी दोहराती-सी लगती है। कार्बी को मिकिर, मिजो को लुशाई, आदि को अका और आपातानी को आबर कहकर अपने आपको सभ्य मानने वाली असम की मैदानी जातियां इन जनजातियों के प्रति अपना हिकारत का भाव व्यक्त करती थीं। जैसे ही इन जनजातियों में थोड़ी जागृति आई इन लोगों ने सबसे पहले अपने नामकरण को ठीक किया। 

उत्तरी थाईलैंड पर भी यही बात लागू होती है। हालांकि हमने महसूस किया कि चीनी, लाओ, विएतनामी और थाई लोगों के साथ मोंग लोगों का एक शत्रुता का भाव है, जो उन्हें मेओ कहकर उनका अपमान करने में व्यक्ति होता है।

मोंग लोग इस इलाके में चीन से आए। विद्वानों का कहना है कि मोंग दरअसल साइबेरिया, मंगोलिया और तिब्बत के बाशिंदे थे जो वहां से पहले चीन चले गए। बाद में विभिन्न कारणों से वे धीरे-धीरे दक्षिण की ओर जाने लगे। इस तरह दक्षिणी चीन, लाओस और विएतनाम, जोकि आपस में जुड़ा हुआ इलाका है, इनकी निवासभूमि बना। 
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लाओस के कम्युनिस्ट गुरिल्लों ने जब फ्रांस द्वारा समर्थित राजा के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी तो 1953 से 1975 तक चले गृहयुद्ध के दौरान मोंग जनजाति के लोगों ने फ्रांस और राजा का साथ दिया था। इस युद्ध में अमरीका की बड़ी भूमिका थी, और इसकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने पैसों का लालच दिखाकर मोंग युवकों का कम्युनिस्टों के खिलाफ युद्ध में भरपूर इस्तेमाल किया। इसी तरह विएतनाम में मोंग लोगों ने अमरीका का साथ दिया। इसलिए जब 1975 में कम्युनिस्टों की जीत हो गई तो बड़ी संख्या में मोंग लोगों को पलायन करके थाईलैंड में शरण लेनी पड़ी।

आज भी आप सोशल मीडिया पर थोड़ी ताकझांक करें तो लाओ, विएतनामी और मोंग लोगों के बीच तकरार होती देखेंगे। एक अमरीकी युवक ने पूछ लिया कि मेओ का अर्थ क्या होता है। इस पर सोशल मीडिया पर क्रोध भरे जवाब आए। अमरीकी युवक ने कहा कि भई मुझे नहीं पता कि मेओ कहने पर आप क्यों भड़क रहे हैं। दरअसल मैं भी एक मोंग हूँ, मेरा जन्म अमरीका में ही हुआ है, और अपनी मातृभूमि के बारे में मैं जरा भी वाकिफ नहीं हूं। 

दरअसल युद्ध के बाद बड़ी संख्या में मोंग लोगों ने अमरीका, फ्रांस, अर्जेन्टिना और आस्ट्रेलिया में शरण ली। मोंग लोग अधिकतर ईसाई होते हैं, कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट। इस कारण भी इनके साथ लाओस और विएतनाम में इनके साथ भेदभाव की घटनाएँ आम हैं। लाओस और विएतनाम के लोग ज्यादातर बौद्ध होते हैं। पूर्वोंत्तर की कई जनजातियों की तरह मोंग लोगों को भी बांसुरी बजाना काफी पसंद है और ये लोग बांस से असम के पेंपा जैसा एक वाद्य भी बनाकर चाव से बजाते हैं।

हमारी यात्रा खत्म होने के बाद हम वासे के घर गए। उसके घर के पास ही उनके समाज का एक कार्यालय बना हुआ है। कार्यालय में एक रजिस्टर रखा हुआ है जिसमें उन लोगों ने अपनी टिप्पणियां लिख छोड़ी है जो वहां मोंग गांव में रहने के लिए आते हैं। दरअसल यह थाई सरकार की एक बहुत ही अच्छी योजना है। वहां कुछ परिवार ऐसे हैं जिनके घर में विदेशी पर्यटकों के रहने लायक सुविधा है। 

इसके लिए उन्हें सरकार से ऋण आदि मिला है। इन परिवारों के पास विदेशी पर्यटक आकर रहते हैं जनजातीय जीवन का जायजा लेने के लिए और प्रकृति की गोद में कुछ दिन बिताने के लिए। हमने रजिस्टर में देखा आने वाले कुछ लोग नृतत्वविद भी थे। 

ये लोग विभिन्न जनजातियों की जीवन शैली पर शोध करते हैं। इस योजना से दोनों ही पक्षों को अच्छा लाभ हो जाता है। शोधार्थियों या पर्यटकों रहने के लिए स्थान मिल जाता है और गांव वालों को कमाई एक जरिया। हेनिंग रजिस्टर में उनलोगों की लिखावट पढ़ रहा था जो उसके देश जर्मनी से आए थे।

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