जब हम पहाड़ पर चढ़ाई चढ़ रहे थे तो अचानक कहीं से किसी चीज के तेजी से गिरने की आवाज आई। मुझे लगा कहीं पटाखे फूट रहे हैं। लेकिन जंगल में पटाखों का क्या काम। आवाज की दिशा में देखा तो एक करीब 50 फुट का पेड़ हरहराकर गिर रहा था। मैंने जीवन में पहली बार किसी पेड़ को इस तरह अपने-आप स्वाभाविक रूप से मरते देखा। गाइड बताता है कि यह पेड़ वहीं पड़ा सड़ जाएगा। इसे इतने घने जंगल से बाहर लाना संभव नहीं है।
चियांग माई के इस राष्ट्रीय पार्क की वनस्पति की विविधता अति समृद्ध है। रास्ते में गाइड हमें दिखाते चलता है देखिए इस छाल का प्रयोग खाने में होता है। हम खाकर देखते हैं, अरे यह तो दालचीनी है। क्या इस पेड़ की छाल को ही हम इतनी कीमत देकर बाजार में खरीदते हैं।
चियांग माई के इस राष्ट्रीय पार्क की वनस्पति की विविधता अति समृद्ध है। रास्ते में गाइड हमें दिखाते चलता है देखिए इस छाल का प्रयोग खाने में होता है। हम खाकर देखते हैं, अरे यह तो दालचीनी है। क्या इस पेड़ की छाल को ही हम इतनी कीमत देकर बाजार में खरीदते हैं।
ज्यादातर दालचीनी बाहर निर्यात होती है, थाई खाने में तीखे मसालों की उतनी प्रधानता नहीं है। हाँ तीखी मिर्च ये लोग जरूर खाते हैं। अलग-अलग मिर्च अलग-अलग तरह से खाने के लिए उपयुक्त होती है। कोई मिर्च कच्ची खाने के लिए, कोई चटनी बनाकर भात के साथ, तो कोई खाने में तीखेपन के लिए मिलाने के लिए।
एक घास जैसी वनस्पति का अंदर का कोमल हिस्सा निकालकर वासे हमें देता है। कहता है इससे पेट में मरोड़े उठे तो ठीक हो जाते हैं। पेट के लिए अच्छी है। एक जगह एक बड़े पाइन पेड़ का तना जला हुआ है। शायद अपने आप आग लग गई होगी। पाइन का मोम जैसा तेल तने से बाहर निकल रहा है। गाइड बताता है कि बचपन में वे लोग इस तरह पाइन से मोम निकालकर उसकी रोशनी में पढ़ा करते थे। आगे बढ़ते हुए कहीं-कहीं गाइड एकाएक रुक जाता है। दिखाता है देखिए ये सांप के यहां से जाने के निशान हैं। सांप लहराती हुई गति से जाता है, कोमल मिट्टी पर अपने निशान छोड़ता हुआ। एक स्थान पर एक छोटी चिड़िया के पंख मिलते हैं। कुंग अंदाजा लगाता है कि किसी चील जैसे शिकारी पक्षी ने किसी छोटी चिड़िया का शिकार किया होगा और उसी के पंख यहां बचे पड़े हैं।
यहां के जंगल में असम के जंगलों की तरह बड़े जानवर बहुतायत में नहीं हैं। बड़े जानवरों में बाघ और भालू हैं। बाकी जंगली मुर्गा, जंगली मोर, जंगली सूअर आदि हैं। जंगल पर निर्भर रहने वाली जनजातियां जंगली सूअर आदि का शिकार करना पंसद करती हैं।
कंचनार के बड़े-बड़े सफेद फूलों से जंगल भरा पड़ा है और इसे एक अनुपम सौंदर्य प्रदान करता है। साथ ही झिंगुरों की अलग-अलग तरह की आवाज का संगीत लगातार हमारे साथ चलता रहता है। एक लीची के पेड़ के पास हम रुकते हैं। वासे इस बात की तहकीकात करता है कि लीची का पेड़ मर क्यों रहा है। ध्यान से देखने पर दिखाई देता है कि पूरे पेड़ को चिंटियों ने अपना बसेरा बना लिया है।
एक घास जैसी वनस्पति का अंदर का कोमल हिस्सा निकालकर वासे हमें देता है। कहता है इससे पेट में मरोड़े उठे तो ठीक हो जाते हैं। पेट के लिए अच्छी है। एक जगह एक बड़े पाइन पेड़ का तना जला हुआ है। शायद अपने आप आग लग गई होगी। पाइन का मोम जैसा तेल तने से बाहर निकल रहा है। गाइड बताता है कि बचपन में वे लोग इस तरह पाइन से मोम निकालकर उसकी रोशनी में पढ़ा करते थे। आगे बढ़ते हुए कहीं-कहीं गाइड एकाएक रुक जाता है। दिखाता है देखिए ये सांप के यहां से जाने के निशान हैं। सांप लहराती हुई गति से जाता है, कोमल मिट्टी पर अपने निशान छोड़ता हुआ। एक स्थान पर एक छोटी चिड़िया के पंख मिलते हैं। कुंग अंदाजा लगाता है कि किसी चील जैसे शिकारी पक्षी ने किसी छोटी चिड़िया का शिकार किया होगा और उसी के पंख यहां बचे पड़े हैं।
यहां के जंगल में असम के जंगलों की तरह बड़े जानवर बहुतायत में नहीं हैं। बड़े जानवरों में बाघ और भालू हैं। बाकी जंगली मुर्गा, जंगली मोर, जंगली सूअर आदि हैं। जंगल पर निर्भर रहने वाली जनजातियां जंगली सूअर आदि का शिकार करना पंसद करती हैं।
कंचनार के बड़े-बड़े सफेद फूलों से जंगल भरा पड़ा है और इसे एक अनुपम सौंदर्य प्रदान करता है। साथ ही झिंगुरों की अलग-अलग तरह की आवाज का संगीत लगातार हमारे साथ चलता रहता है। एक लीची के पेड़ के पास हम रुकते हैं। वासे इस बात की तहकीकात करता है कि लीची का पेड़ मर क्यों रहा है। ध्यान से देखने पर दिखाई देता है कि पूरे पेड़ को चिंटियों ने अपना बसेरा बना लिया है।
अब यह पेड़ अपने अंतिम दिन गिन रहा है। इसी तरह एक और पेड़ की ओर दिखाते हुए कुंग बताता है कि इसके पत्तों से भयानक खुजली हो जाती है और वह करीब एक सप्ताह बाद ही जाती है। वह थाई, कारेन और मोंग भाषा में उसका नाम बताता है। थाई भाषा में उसे वान चांग हाइ कहते हैं। वान यानी वनौषध, चांग यानी हाथी और हाइ अर्थात आंसू। यानी हाथी को भी आंसू ला देने वाली वनौषध।
एक समय हम पहाड़ की चोटी पर पहुंच जाते हैं। आदत नहीं होने के कारण सांस फूलती है, और घुटने लगभग जवाब दे चुके होते हैं लेकिन कुंग बताता है कि अब और चढ़ाई नहीं है। यहां से नीचे के कई छोटे-छोटे शहरों की धुंधली-सी आकृति दिखाई देती है। चियांग माई शहर कहीं दिखाई नहीं दे रहा। वह उस पहाड़ी के उस पार छिप गया है।
एक समय हम पहाड़ की चोटी पर पहुंच जाते हैं। आदत नहीं होने के कारण सांस फूलती है, और घुटने लगभग जवाब दे चुके होते हैं लेकिन कुंग बताता है कि अब और चढ़ाई नहीं है। यहां से नीचे के कई छोटे-छोटे शहरों की धुंधली-सी आकृति दिखाई देती है। चियांग माई शहर कहीं दिखाई नहीं दे रहा। वह उस पहाड़ी के उस पार छिप गया है।
यानी हम एक पहाड़ी को पार कर उसके इधर आ गए हैं। मुझे नगा पहाड़ियां पारकर बर्मा में छुपे अलगाववादी नेता परेश बरुवा से मिलने जाने वाले पत्रकार का वह ब्योरा याद आ गया जिसमें वह बताता है कि किस तरह वे लोग सुबह चार-पांच बजे से नौ-दस बजे तक एक-एक चढाई पार कर परेश बरुवा से मिलने बर्मा पहुंचे थे।
चोटी पर बोर्ड लगा है – यह स्थान समुद्र तल से करीब 1500 मीटर ऊपर है। यहां की वनस्पति भी अब एकरस हो गई है। ज्यादातर बर्च और चीड़ के पेड़ हैं। वहीं एक चिकने को पत्थर को दिखाकर कुंग बताता है यहीं थाईलैंड के राजा ने भोजन किया था। हम भी उस स्थान पर बैठकर फोटो खिंचवाते हैं।
सरकार ने एक जगह बैठने और दोपहर का भोजन करने के लिए लोहे का पुल जैसा बना दिया है। पुल पर एक छोटी-सी बुद्ध प्रतिमा रखी है। हमारे खाने के लिए भात गाइड के झोले में थे। धर्म से ईसाई वासे बुद्ध को भोग लगाने की तैयारी कर रहा है। मैं कनखियों से यह सब देख रहा था और हेनिंग को इशारा कर दिया कि वह भोग लगने से पहले खाना न खाए। वासे मोंग भाषा में गीत गाता है, भगवान को भोग ग्रहण करने की प्रार्थना करता हुआ सा।
सरकार ने एक जगह बैठने और दोपहर का भोजन करने के लिए लोहे का पुल जैसा बना दिया है। पुल पर एक छोटी-सी बुद्ध प्रतिमा रखी है। हमारे खाने के लिए भात गाइड के झोले में थे। धर्म से ईसाई वासे बुद्ध को भोग लगाने की तैयारी कर रहा है। मैं कनखियों से यह सब देख रहा था और हेनिंग को इशारा कर दिया कि वह भोग लगने से पहले खाना न खाए। वासे मोंग भाषा में गीत गाता है, भगवान को भोग ग्रहण करने की प्रार्थना करता हुआ सा।
उसके बाद हम थाई शैली में बनाए हुए भात, स्ट्राबेरी और केले का भोजन करते हैं। यहां की तरह फिलीपीन्स में भी मैंने देखा कि लोग अपने पुराने रीति-रिवाजों और मान्यताओं को अब भी छोड़ नहीं पाए हैं। फिलीपीन्स में तो धर्म से कैथोलिक होते हुए भी लोग एक पुराने ऐतिहासिक क्रास के टुकड़ों को ही चाकू से खुरच लाते हैं और उसका ताबीज बनाकर गले में पहन लेते हैं। है न एशिया और यूरोप का अनोखा मेल।
पहाड़ से उतरकर गाड़ी में वापस चियांग माई शहर आने में लगभग दो घंटे समय लगता है। कुंग ने कहा कि आपलोग थोड़ी देर सो सकते हैं। लेकिन दुखते पैरों के साथ नींद किसे आने वाली थी। रास्ते में कुंग ड्राइवर के साथ काफी गंभीरता से बतिया रहा था। फिर उसे लगा कि हमें भी बातचीत में शामिल करना चाहिए। उसने बताया कि उसकी एक लड़की के साथ सगाई लगभग तय हो गई थी, लेकिन फिर पता चला कि लड़की का किसी के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा है।
पहाड़ से उतरकर गाड़ी में वापस चियांग माई शहर आने में लगभग दो घंटे समय लगता है। कुंग ने कहा कि आपलोग थोड़ी देर सो सकते हैं। लेकिन दुखते पैरों के साथ नींद किसे आने वाली थी। रास्ते में कुंग ड्राइवर के साथ काफी गंभीरता से बतिया रहा था। फिर उसे लगा कि हमें भी बातचीत में शामिल करना चाहिए। उसने बताया कि उसकी एक लड़की के साथ सगाई लगभग तय हो गई थी, लेकिन फिर पता चला कि लड़की का किसी के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा है।
उसने कहा कि अब मुझे यह सगाई नहीं करनी। सारे रास्ते वह इस प्रकरण की महीन से महीन बातें हमें बताता रहा और हमारी सलाह लेता रहा। मैंने हेनिंग से कहा कि थोड़ी सी संख्या वाले (कारेन लोग मुख्य रूप से बर्मा में रहते हैं, थाईलैंड में इनकी संख्या अधिक नहीं है) जनसमूहों में ऐसी दिक्कते आती हैं जिनकी हम बड़े जनसमूह अक्सर कल्पना भी नहीं कर पाते। समय पर शादी नहीं हो पाना भी ऐसी ही एक समस्या है।
बैंकाक में चने वाला
इस बार फिर से बैंकाक में रुकना हुआ। इस बार मुख्य बाजार से सात-आठ किलोमीटर रुका। होटल के पास ही एक खुले स्थान में शराब और खाने-पीने की दुकानें लगी हुई थीं जो शाम के बाद ही खुलती थीं और देर रात तक खुली रहती थीं, जैसाकि बैंकाक के टूरिस्ट इलाकों में चलन है। जब हम बैठकर कुछ खा रहे थे तो अचानक आवाज आई क्या भैयाजी कैसे हैं।
बैंकाक में चने वाला
इस बार फिर से बैंकाक में रुकना हुआ। इस बार मुख्य बाजार से सात-आठ किलोमीटर रुका। होटल के पास ही एक खुले स्थान में शराब और खाने-पीने की दुकानें लगी हुई थीं जो शाम के बाद ही खुलती थीं और देर रात तक खुली रहती थीं, जैसाकि बैंकाक के टूरिस्ट इलाकों में चलन है। जब हम बैठकर कुछ खा रहे थे तो अचानक आवाज आई क्या भैयाजी कैसे हैं।
नजर उठाकर देखा तो एक भारतीय युवक था, यूपी या बिहार का रहने वाला लग रहा था और सेंकी हुई मुंगफली और चना वगैरह बेच रहा था। अपने यहां लोग मुंगफली और चना आदि के बारे में अच्छी तरह जानते हैं चाहे वह देश के किसी भी राज्य का निवासी हो। लेकिन वहां विदेशी पर्यटकों को पहले बताना पड़ता है कि यह मुंगफली है, जरा चखकर देखिए। उसने हमें भी चम्मच से मुंगफली चखने के लिए दी। वह बिहार का रहने वाला था और पहले किसी दुकान में काम करने के लिए यहां आया था।
साल भर के वीसा पर है। बैंकाक में भारतीय व्यापारी, दर्जी और दुकानों में काम करने वाले कर्मचारी तो काफी संख्या में हैं, लेकिन इस तरह घूम-घूमकर चना बेचने वाला व्यक्ति पहली बार मिला। याद आया, इसी तरह रंगून में पार्क के बाहर पकोड़ी तलता एक भोजपुरी भाषी खोमचा वाला मिल गया था, जिसे पुलिस वाला वहां से जबरदस्ती हटा रहा था। इसे क्या कहेंगे, एक यूपी-बिहार वाले का जीवट या यूपी-बिहार की बेरोजगारी पर टिप्पणी।