नया साल देखते-देखते बीत गया। देखते-देखते बीत जाना क्या यह सिर्फ एक अहसास है या सचमुच आज की जिंदगी इतनी मसरूफियत भरी हो गई है कि सबकुछ देखते-देखते बीत जाता है और पता ही नहीं चलता।
कुछ तो बदलाव आया है समाज में कि जिंदगी पहले की अपेक्षा अधिक व्यस्ततापूर्ण हो गई है। ऐसा नहीं है कि हम अपने बुजुर्गों की अपेक्षा कोई अधिक महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं, फिर भी हम अपने-अपने बुजुर्गों की जीवन शैली याद करें तो पाएंगे कि उसमें एक लय थी, जो अब आपाधापी में बदलती जा रही है।
व्यस्तता बढ़ने के दो कारण तो बिल्कुल स्पष्ट हैं। एक, आवागमन और संचार के साधनों का बढ़ जाना। पहले दूर किसी राज्य में कोई आयोजन होता था तो जाने के बारे मे सोचते तक नहीं थे। आजकल सोचते ही नहीं बल्कि अधिकतर मामलों में लोग दूर-दराज के आयोजनों में भाग लेने जाते भी हैं। इसी तरह संचार के माध्यम बढ़ जाने के कारण काफी समय बातचीत में चला जाता है।
व्यस्तता बढ़ने के दो कारण तो बिल्कुल स्पष्ट हैं। एक, आवागमन और संचार के साधनों का बढ़ जाना। पहले दूर किसी राज्य में कोई आयोजन होता था तो जाने के बारे मे सोचते तक नहीं थे। आजकल सोचते ही नहीं बल्कि अधिकतर मामलों में लोग दूर-दराज के आयोजनों में भाग लेने जाते भी हैं। इसी तरह संचार के माध्यम बढ़ जाने के कारण काफी समय बातचीत में चला जाता है।
पहले लगता था कि अब फोन नंबर डायल नहीं करना पड़ेगा और बटन दबाते ही मनचाहा नंबर लग जाएगा तो समय बचेगा। लेकिन समय बचा नहीं वह ज्यादा खर्च होने लगा। जैसे ही संचार का कोई नया माध्यम आता है वह आपके पाकिट से थोड़ा समय चुरा कर ले जाता है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप – सब पर यह बात लागू होती है।
दूसरा कारण है, आबादी का बढ़ना। साठ और सत्तर के दशकों में आबादी में जो बढ़ोतरी हुई उसका नतीजा आज की आपाधापी में दिखाई देता है। आप अपने माता-पिताओं से तुलना कर देखिए। उनके जितने रिश्तेदार हुआ करते थे, उनकी तुलना में आज की पीढ़ी के रिश्तेदार अधिक मिलेंगे। रिश्तेदारियों का संख्या में बढ़ना भी आज की आपाधापी का एक प्रमुख कारण है। हो सकता है आने वाली पीढ़ी इस अर्थहीन व्यस्तता से बच जाएगी क्योंकि आज जनसंख्या के बढ़ने की गति वापस धीमी हो चुकी है।
अक्सर पूछा जाता है कि ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है। मुझे लगता है पहेलियां बुझाना ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका होता है। उत्तर जानने के पहले आपके दिमाग में प्रश्न आना होगा। कक्षा में शिक्षक आते हैं और पाठ्यक्रम से निकालकर ज्ञान की बौछार करने लगते हैं।
दूसरा कारण है, आबादी का बढ़ना। साठ और सत्तर के दशकों में आबादी में जो बढ़ोतरी हुई उसका नतीजा आज की आपाधापी में दिखाई देता है। आप अपने माता-पिताओं से तुलना कर देखिए। उनके जितने रिश्तेदार हुआ करते थे, उनकी तुलना में आज की पीढ़ी के रिश्तेदार अधिक मिलेंगे। रिश्तेदारियों का संख्या में बढ़ना भी आज की आपाधापी का एक प्रमुख कारण है। हो सकता है आने वाली पीढ़ी इस अर्थहीन व्यस्तता से बच जाएगी क्योंकि आज जनसंख्या के बढ़ने की गति वापस धीमी हो चुकी है।
अक्सर पूछा जाता है कि ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है। मुझे लगता है पहेलियां बुझाना ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका होता है। उत्तर जानने के पहले आपके दिमाग में प्रश्न आना होगा। कक्षा में शिक्षक आते हैं और पाठ्यक्रम से निकालकर ज्ञान की बौछार करने लगते हैं।
बहुत कम ही छात्र होते हैं जिन्हें इस अनचाही ज्ञानगंगा में भींगना पसंद होता है। इसकी बजाय यदि छात्र की ओर से ही कोई प्रश्न आए और शिक्षक उनका उत्तर दें तो वैसे उत्तर छात्रों का मस्तिष्क पूरी तरह सोख लेगा और वह जानकारी उनके ज्ञान का हिस्सा बन जाएगी।
वर्ष 2016 इस पहेली का उत्तर खोजने में बीत गया कि भारत की जिस चीज को सारी दुनिया पूजती है उसे भारतवासी क्यों अपने यहां से बहिष्कृत कर देते हैं। पिछले ढाइ हजार सालों में भारत में पैदा हुए जिन दो व्यक्तियों ने दुनिया को मौलिक ज्ञान दिया है वे हैं गौतम बुद्ध और गांधी।
वर्ष 2016 इस पहेली का उत्तर खोजने में बीत गया कि भारत की जिस चीज को सारी दुनिया पूजती है उसे भारतवासी क्यों अपने यहां से बहिष्कृत कर देते हैं। पिछले ढाइ हजार सालों में भारत में पैदा हुए जिन दो व्यक्तियों ने दुनिया को मौलिक ज्ञान दिया है वे हैं गौतम बुद्ध और गांधी।
इन दोनों को भारत के बाहर पूजा जाता है। गौतम बुद्ध ने दुनिया को जो दे दिया उसके बाद एक तरह से और कुछ जानने के लिए बाकी नहीं रह जाता। उस पर अमल करने को छोड़कर। और गांधी ने ऐसे प्रश्नों का सामना किया जिनके उत्तर की अधिक तलाश आने वाली पीढ़ियों को होने वाली है। और पिछले डेढ़ हजार वर्षों में भारत में ऐसा क्या हुआ कि इन दोनों की ही विचारधाराओं को भारत से पूरी तरह बहिष्कृत कर दिया गया। गांधी को तो हमने शारीरिक रूप से ही हमारे बीच से हटा दिया।
गौतम बुद्ध के बारे में यूनिवर्सिटी के किसी प्रतिभावान छात्र से पूछिए तो ज्यादा संभावना इस बात की है कि वह कहेगा – गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे, उनकी प्रेरणा से सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।
लेकिन गौतम बुद्ध के इस धरती पर आने और रहने की घटना सिर्फ एक धर्म प्रवर्तक के जन्म लेने की घटना नहीं है। इसी तरह गांधी के बारे में पूछिए तो लोग आपको बताएंगे कि गांधी हमारे राष्ट्रनायक थे, उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व किया। लेकिन स्वाधीनता आंदोलन सभी उपनिवेशों में हुए और सबके अपने-अपने राष्ट्रनायक थे। लेकिन गांधी इस समूची दुनिया के लिए अनूठे क्यों थे।
बौद्ध पर्यटकों के भारत आने पर हमें थोड़ी देर के लिए अहसास होता है कि ओह बौद्ध धर्म का जन्म भारत और नेपाल की धरती पर ही हुआ था। लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी का ऐसा कोई जीवंत अहसास नहीं है जो यह दिखाता हो कि हम ही गौतम बुद्ध की परंपरा के वारिस हैं।
बौद्ध पर्यटकों के भारत आने पर हमें थोड़ी देर के लिए अहसास होता है कि ओह बौद्ध धर्म का जन्म भारत और नेपाल की धरती पर ही हुआ था। लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी का ऐसा कोई जीवंत अहसास नहीं है जो यह दिखाता हो कि हम ही गौतम बुद्ध की परंपरा के वारिस हैं।
इसी तरह गांधी की तस्वीर और गांधी के नाम की पूजा होती है लेकिन गांधी किसलिए गांधी थे यह बहुत कम लोग जानते हैं। आश्चर्य ही क्या कि उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम भारत में कहीं दिखाई नहीं देता।
हम सौभाग्यशाली पीढ़ी हैं कि गूगल नाम का एक महान शिक्षक हमलोगों के पीसी और मोबाइल फोन पर हमेशा हमारे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए तत्पर रहता है। यदि आप अंग्रेजी भाषा जानते हैं तो अपने मन में बेशक हजार प्रश्न उदित होने दीजिए। क्योंकि उनका उत्तर खोजने के लिए गूगल हमेशा तत्पर रहेगा।
हम सौभाग्यशाली पीढ़ी हैं कि गूगल नाम का एक महान शिक्षक हमलोगों के पीसी और मोबाइल फोन पर हमेशा हमारे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए तत्पर रहता है। यदि आप अंग्रेजी भाषा जानते हैं तो अपने मन में बेशक हजार प्रश्न उदित होने दीजिए। क्योंकि उनका उत्तर खोजने के लिए गूगल हमेशा तत्पर रहेगा।
गौतम बुद्ध और गांधी के अलावा हमें वर्ष 2016 में इस प्रश्न ने भी बहुत सताया कि हम भारतवासियों में ऐसा क्या था कि हम हमेशा युद्धों में हारते गए, हम कई सदियों तक गुलाम बने रहे। ऐसा क्या था कि अंग्रेजों ने इतने बड़े देश को इतनी सहजता के साथ गुलाम बना लिया।
आज जब हमें यह जानकारी मिलती है कि अंग्रेज अफसरों की आवासी बस्तियों, जैसे सिविल लाइन्स, और शिमला जैसे शहरों की माल रोड जैसी सड़कों पर भारतीयों का आना-जाना वर्जित था, तो जैसे प्रश्नों की मधुमक्खियां क्यों, क्यों, क्यों कहकर हमें डंक मारने के लिए दौड़ पड़ती है।
उनसे बचने के लिए जो उत्तर का मरहम हमें चाहिए गनीमत है कि वह हमारे इंटरनेट पर आज उपलब्ध है। अंत में मैं इस प्रश्न को फिर दोहराता हूं – बुद्ध और गांधी को इस देश ने बहिष्कृत क्यों कर दिया। आइए वर्ष 2017 में हम इन दोनों पहेलियों को सुलझाएं।
मेरा मानना है कि आम जीवन शैली में किसी विचारधारा का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है। देश का अफ़सोस यह है कि ऊपर बैठे लोग आज एकमात्र विचारधारा को पूजते हैं - सत्ता (पद, पैसा या बाहुबल)। ऐसे में गांधी या बुद्ध हमारे लिए मूर्ति से बढ़कर कुछ कैसे हो सकते हैं। क्योंकि रोजमर्रा की ज़िंदगी में हम इन महापुरुषों के बजाय अपने ऊपर के लोग (आईएएस, नेता) से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
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जवाब देंहटाएंnice post.....
Thanks For Sharing
बहुत ही अच्छा article है। .... Thanks for sharing this!! :)
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