जर्मनी में इस समय विमर्श का केंद्र सीरिया का युद्ध है। सीरिया युद्ध इसलिए क्योंकि इसी के कारण वहां से बड़ी संख्या में यूरोप में शरणार्थियों के रेले आने शुरू हो गए हैं। आम बातचीत में शरणार्थी का मुद्दा निकल ही आता है जो यह दर्शाता है यूरोपवासी शरणार्थियों के प्रति अपनी सरकारों की नीति से काफी खफा हैं।
एक बातचीत के दौरान जब मैंने कहा कि पासपोर्ट की जांच करने के दौरान अधिकारी ने मुझसे वापसी का टिकट भी मांगा था तो मेरे मित्र ने व्यंग्य करते हुए कहा कि यदि तुम कहते कि मेरा नाम अली है और मैं सीरिया से आया हूं तो फिर किसी भी चीज की जरूरत नहीं पड़ती। पासपोर्ट भी न होने से चल जाता।
जर्मन सरकार ने तुर्की से समझौता किया है कि यदि वह एक शरणार्थी को लेता है तो उसके बदले बाकी यूरोप भी एक शरणार्थी को लेगा। मित्रों ने बताया कि यूरोप का असली मतलब है जर्मनी। यानी ये शरणार्थी जर्मनी छोड़कर और कहीं नहीं जाएंगे। जर्मनी में शरणार्थियों के विरुद्ध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
जर्मन सरकार ने तुर्की से समझौता किया है कि यदि वह एक शरणार्थी को लेता है तो उसके बदले बाकी यूरोप भी एक शरणार्थी को लेगा। मित्रों ने बताया कि यूरोप का असली मतलब है जर्मनी। यानी ये शरणार्थी जर्मनी छोड़कर और कहीं नहीं जाएंगे। जर्मनी में शरणार्थियों के विरुद्ध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
बर्लिन में इसका कोई प्रभाव दिखाई नहीं दिया। मेरा सैक्सनी राज्य की राजधानी ड्रेसडन जाने का इरादा था लेकिन मित्रों ने बताया कि वहां नहीं जाना ही बेहतर होगा क्योंकि वहां शरणार्थियों के विरुद्ध काफी आक्रोश है और ऐसा न हो कि गोरी चमड़ी को न होने के कारण कहीं मैं भी इसका शिकार हो जाऊं। विदेश में सावधानी बरतना ही ठीक है। मैंने ड्रेसडन न जाकर न्यूरमबर्ग जाने का कार्यक्रम बना लिया।
बर्लिन में शरणार्थी कहीं दिखाई नहीं दिए। किसी-किसी सबवे या फ्लाईओवर पर पूरा का पूरा परिवार बैठा दिखाई दिया। पता नहीं ये लोग कौन थे। भीख के लिए कागज का गिलास का इस्तेमाल करते हैं। लगभग हर परिवार के साथ उनका कुत्ता भी साथ में दिखा। इसी से मैंने अंदाज लगाया कि ये शरणार्थी भी हो सकते हैं। वैसे बर्लिन में जिप्सी भी मेट्रो में भीख मांगते हैं।
बर्लिन में शरणार्थी कहीं दिखाई नहीं दिए। किसी-किसी सबवे या फ्लाईओवर पर पूरा का पूरा परिवार बैठा दिखाई दिया। पता नहीं ये लोग कौन थे। भीख के लिए कागज का गिलास का इस्तेमाल करते हैं। लगभग हर परिवार के साथ उनका कुत्ता भी साथ में दिखा। इसी से मैंने अंदाज लगाया कि ये शरणार्थी भी हो सकते हैं। वैसे बर्लिन में जिप्सी भी मेट्रो में भीख मांगते हैं।
लेकिन इससे यह छवि नहीं बना लेनी चाहिए कि भारत की तरह वहां बड़ी संख्या में भिखारी हैं। बस थोड़े से भिखारी हैं। स्थानीय यात्री इनसे बचकर रहते हैं क्योंकि पॉकेटमारी जैसे अपराधों के लिए इन्हीं पर संदेह किया जाता है। कोई जिप्सी ट्रेन स्टेशन के बाहर कोई वाद्य यंत्र लेकर बजाता दिखा जाएगा। ट्रेन में भी वाद्य यंत्र बजाकर भीख मांगते हैं। सीधे-सीधे नहीं।
वियेना में वहां का मुख्य महल शोनब्रून स्लॉस देखने के बाद मैं सुहानी धूप में टहलते हुए पैदल ही फुटपाथ पर चल रहा था कि एक चौराहे पर एक भारतीय युवती दिखाई पड़ गई। स्मार्ट-सी चाल से चौराहे ही तरफ आ रही थी, जैसे कहीं जाना है। लगभग ठीकठाक पोशाक में। पैरों में जूते, जैकेट और कंधे पर एक थैला या बैग।
मैंने सोचा इनसे बात की जाए क्या, कि यहां क्या काम करती हैं। तब तक चौराहे पर लाल बत्ती हो गई थी। गाड़ियां रुक गईं और मेरे लिए आगे बढ़ने का हरा संकेत आ गया। तब तक मैंने देखा कि वह युवती रुकी हुई कारों से भीख मांगने लगी। हाथ से इशारा करती कि भूख लगी है कुछ खाने के लिए पैसे चाहिए।
बस एक दो तीन सेकंड के लिए इंतजार करती फिर अगली गाड़ी की ओर बढ़ जाती। यह युवती कैसे वियेना आई और क्या भीख मांगना ही इसका एकमात्र पेशा है, इन सवालों से ज्यादा यह सवाल मुझे परेशान करने लगा कि इससे हम भारतीयों की इन देशों में क्या छवि बनती होगी।
वियेना में दूसरे दिन भी एक चौराहे पर एक दाढ़ी वाला व्यक्ति उसी तरीके से चौराहे पर गाड़ी के चालकों से भीख मांगता दिखा। शरीर से वह भी उस युवती की तरह चुस्त दिखा। पैरों में जूते पहनना वहां के मौसम की मजबूरी है।
जर्मनी से लौटे हमारे एक मित्र ने बताया था कि वहां हम भारतीयों को उतनी अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता। हालांकि मुझे प्रत्यक्ष रूप से कहीं भी रंगभेद का आभास नहीं हुआ। जर्मनी और आस्ट्रिया दोनों ही गैर-अंग्रेजी भाषी देश होने के कारण सार्वजनिक स्थानों पर लिखी हर बात को समझना संभव नहीं होता था और हमें किसी अनजान व्यक्ति की मदद लेनी ही पड़ती थी।
जर्मनी से लौटे हमारे एक मित्र ने बताया था कि वहां हम भारतीयों को उतनी अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता। हालांकि मुझे प्रत्यक्ष रूप से कहीं भी रंगभेद का आभास नहीं हुआ। जर्मनी और आस्ट्रिया दोनों ही गैर-अंग्रेजी भाषी देश होने के कारण सार्वजनिक स्थानों पर लिखी हर बात को समझना संभव नहीं होता था और हमें किसी अनजान व्यक्ति की मदद लेनी ही पड़ती थी।
ऐसे समय सभी का व्यवहार नम्र और भद्रोचित होता था। उन देशों में ज्यादा समय तक रहने पर क्या मेरी यही धारणा बनी रहती इस प्रश्न का जवाब वहां ज्यादा समय रहकर ही पाया जा सकता था। हो सकता है भारतीयों के कुछ जातीय गुणों के कारण उन्हें संदेह का पात्र बनना पड़ता होगा।
एक बार एक एयरपोर्ट में एक पुस्तकों की दुकान पर एक कागज चिपका देखा जिस पर लिखा था कि आप पर कैमरे की नजर है, चोरी करने की कोशिश की तो पकड़े जाएंगे। इस बात के साथ उस पर एक चित्र लगा था जिसमें एक नीग्रो को पुस्तक चोरी करते दिखाया गया था।
चोर का उदाहरण देने की जरूरत पड़ते ही उस नोटिस बनाने वाले के दिमाग में नीग्रो की तस्वीर देने का खयाल क्यों आया होगा। सोचने वाली बात है। बर्लिन के एक स्टेशन पर देखा कि टिकट इंस्पेक्टर एक भारतीय के साथ बहस कर रहा था।
जल्दी-जल्दी में मैंने जो अंदाज लगाया वह यह था कि भारतीय बिना टिकट के पकड़ा गया है और जुर्माना देने के पहले बहस कर रहा है। मेरे लिए यह उत्सुकता का विषय बन गया था। इसलिए अपनी ट्रेन की ओर दौड़ते-दौड़ते भी मैं उस पर नजर डालते रहा और देखा कि भारतीय पुलिस का नाम सुनने के बाद जुर्माना देने के लिए अपना बटुआ निकाल रहा है।
पता नहीं कैसे गोरों के देश में घूमते-घूमते अनजाने की एक हीनता ग्रंथि धीरे-धीरे किसी अनजाने रास्ते से होकर मेरे अंदर घुस जाती है। तब किसी अजनबी का व्यवहार सामान्य होने पर भी मुझे लगता है यह कहीं मुझे हिकारत की नजर से तो नहीं देख रहा है। किसलिए? हो सकता है मेरी चमड़ी के रंग के कारण।
पता नहीं कैसे गोरों के देश में घूमते-घूमते अनजाने की एक हीनता ग्रंथि धीरे-धीरे किसी अनजाने रास्ते से होकर मेरे अंदर घुस जाती है। तब किसी अजनबी का व्यवहार सामान्य होने पर भी मुझे लगता है यह कहीं मुझे हिकारत की नजर से तो नहीं देख रहा है। किसलिए? हो सकता है मेरी चमड़ी के रंग के कारण।
लेकिन चमड़ी के रंग से क्या होता है। देखो ढेर सारे जापानी, कोरियाई, विएतनामी और चीनी लोगों की चमड़ी का रंग भी मेरे ही जैसा है। वे किस तरह सामान्य ढंग से गर्व से मुंह उठाकर चल रहे हैं। मुझे भी दबने की क्या जरूरत है। लेकिन किसी जापानी, कोरियाई, विएतनामी या चीनी को चौराहे पर भीख मांगते तो नहीं देखा। और किसी को बिना टिकट यात्रा कर पकड़े जाते भी नहीं।