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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

रविवार, 31 जुलाई 2016

देखिए न इस्लाम के नाम पर क्या कर दिया

जब भी बांग्लादेश जाना होता है उसके पहले पहले वहां हालात असामान्य हो जाते हैं। पिछली बार बांग्लादेश में घुसने से पहले ही वहां विपक्षी दल का पथ अवरोध शुरू हो गया था जिसमें बसों को आग लगाई जा रही थी। उस समय मुझे ट्रेन से होकर ही ढाका पहुंचना था, इसलिए मन में काफी डर था। 

इस बार वीसा बनवाने के बाद ढाका में एक जुलाई 2016 को गुलशन वाली घटना हो गई जिसमें आईएस के आतंकियों ने कई विदेशियों को मार डाला था। इसके तुरंत बाद किशोरगंज (शलोकिया) में ईद की नमाज के इमाम को मारने के लिए आतंकियों ने हमला किया जिसमें पुलिस वाले मारे गए। 

किशोरगंज की घटना के बाद सोचा कि कार्यक्रम रद्द कर दिया जाए। फिर कार्यक्रम को नहीं बदलने का फैसला किया। क्योंकि बार-बार जाना होता नहीं है। और सोचा कि इतनी बड़ी घटना हुई है तो कुछ ज्यादा जानकारियां मिल जाएंगी।

विमान बांग्लादेश एयरलाइंस को बोलचाल की भाषा में विमान या विमान बांग्लादेश कहते हैं। विमान के उड़ते ही उद्घोषक बिस्मालाह से शुरुआत करती है और अंत अल्लाह हाफिज से। बांग्लादेश का राष्ट्रधर्म इस्लाम होने के बाद से यह जरूरी है। 

एयरलाइंस काफी लचर व्यवस्था वाली है। एयरपोर्ट पर जो बस हमें विमान से गेट तक ले जाने के लिए खड़ी थी वह काफी धुंआ फेंक रही थी। उतना धुंआ फेंकने वाली आजकल हमारे यहां की सीटी बसें भी नहीं रहीं।

अंदर इमीग्रेशन के कई काउंटर तो हैं और विदेशियों के लिए अलग काउंटर भी, पर उन पर इतनी धीमी गति से कार्रवाई होती है कि एक-एक यात्री के लिए 7-8 मिनट लग जाते हैं। मैं जहां कतार में खड़ा था वहां किसी ने उल्टी कर दी थी या पता नहीं किस चीज की गंदगी थी। 

थोड़ी देर में हिजाब परिहित एक सफाई करने वाली महिला आई और उसे साफ कर दिया। मेरे आगे पांच लोग ही होंगे लेकिन खड़े-खड़े पांव दुखने लगे। मैं काउंटर के उस पार देख रहा था जहां मनी एक्सचेंज के करीब आधा दर्जन काउंटर थे। मैं सोच रहा था कि किस काउंटर से हमें डालर को टाका में बदलवाना चाहिए। 

ऐसा नहीं हो कि उधर दलाल पीछे पड़ जाएं। देखा कि सोनाली बैंक के काउंटर से लोग पैसे बदलवा रहे हैं। मैंने भी सोच लिया कि सोनाली बैंक के पास ही जाऊँगा। सोनाली बैंक का नाम किसी समय असम के अखबारों में खूब उछला था। उस समय उल्फा का बोलबाला था और खबरें थीं कि उल्फा के नेता परेश बरुवा का करोड़ों रुपया इसी बैंक में है। 

यह खबर भी निकली कि बांग्लादेश सरकार ने जब से सख्ती बढ़ा दी तब से उसका सारा पैसा बैंक में जब्त कर लिया गया। लेकिन इसके बारे में प्रामाणिक जानकारी मिलना मुश्किल है। खबरें तो ये भी थीं कि फुटबाल के शौकीन परेश बरुवा ने करोड़ों रुपए बांग्लादेश के विभिन्न कारोबारों में लगा रखे हैं।

कई फ्लाइटें एक साथ आई थीं। इमिग्रेशन के जिन काउंटरों पर बांग्लादेशी नागरिक अपने पासपोर्ट पर स्टांप लगवा रहे थे उन पर काफी भीड़ थी। लगभग सभी लोग रियाध, अबू धाबी, दम्माम और दुबई से लौटे थे। उनके पास काफी सामान था। इन देशों से भारत आने वाले यात्री भी जमकर खरीदारी करके आते हैं। आने वाले यात्री उन देशों में काम करते हैं। 

काफी यात्रियों के साथ उनकी पत्नियाँ भी थीं जो काले बुर्के में थीं। काफी पुरुष भी अरब शैली के लंबे चोंगे में थे और उनके बच्चे भी। दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश के माहौल में यह हास्यास्पद लग रहा था।

पहली बार किसी एयरपोर्ट पर देखा कि सामान वाले आधे बेल्ट एक तरफ हैं और आधे बेल्ट दूसरी तरफ। इमिग्रेशन अधिकारी ने सरलता से पूछा ढाका क्यों आए हैं। मैंने कहा किसी परिचित से मिलने। तो उसने कहा - सौजन्यमूलक मुलाकात करने? शुद्ध बांग्ला बोलने का टिपिकल बांग्लादेशी स्टाइल।

सोनाली बैंक के काउंटर पर एक डालर के अस्सी टाका और बीस पैसे के हिसाब से टाका मिल गए। बस डालर लिया, उसे देखा, परखा कि असली तो है न और टाका दे दिए। कोई कमीशन वगैरह नहीं। पास के काउंटर से चार सौ टाका में बांग्लालिंक का सिम कार्ड, टॉक टाइम और डाटा भरवा लिया। आगे कौन यह सब करता रहेगा। बाहर निकलने के गेट पर सूटकेश को एक्स रे कराना पड़ा। खैर!

टैक्सी के काउंटर पर पूछा कि अमुक जगह जाने के कितने तो उसने चार्ट देखकर कहा चौदह सौ। मैंने अपनी सूटकेश पकड़ी और कहा कि बाहर तीन सौ में सीएनजी ले लूंगा। यहां ऑटोरिक्शा को सीएनजी कहते हैं क्योंकि वे सीएनजी से चलते हैं। टैक्सी के काउंटर वाले ने कहा कि नाराज क्यों होते हैं चलिए सौ टाका कम दे दीजिएगा।

मैंने कहा सात सौ दे सकता हूं। मेरे लाख रुखापन दिखाने के बावजूद उसने सात की जगह आठ सौ के लिए मुझे मनवा ही लिया। आखिर हमारा होटल था भी 18 किलोमीटर दूर। आते समय इतनी ही दूरी के लिए ऑटो वाले को तीन सौ टाका दिए। ऑटो यानी सीएनजी और टैक्सी में इतना फर्क तो होता ही है।

टैक्सी कंपनी का कर्मचारी हमारी मदद के लिए हमारे साथ हो गया। उसने कहा बस टैक्सी आ ही रही है। उसने ड्राइवर को फोन कर दिया था। कहा कि चेकिंग के लिए पांच मिनट लेट हो रहे हैं। गुलशन की घटना के बाद चेकिंग बढ़ा दी है। देखिए न इस्लाम के नाम पर कितना बुरा काम कर दिया। 

मैंने पूछा यहां जो इतनी पुलिस मिलिटरी है हमेशा रहती है या इस घटना के बाद लगा दी है। उसने कहा हमेशा रहती है। फिर और भी कुछ-कुछ बताने लगा। नई बात यह हुई है कि अब एयरपोर्ट आने वाली हर टैक्सी और गाड़ी के यात्रियों को उतारकर बाकायदा तलाशी ली जाती है।

टैक्सी पर पानी के छींटें लगे हुए थे। पता नहीं धुलाई करके लाया था या और कुछ। यह एक काफी पुरानी टोयोटा कार थी। ढाका में जितनी भी कारें हैं वे सभी टोयोटा हैं। दूसरी कंपनियां अपवाद स्वरूप ही दिखाई देती हैं। टोयोटा भी जापान से पुरानी रीकंडीशंड की हुई आती हैं। 

2012-13 के मॉडल का करीब 22-23 लाख टाका पड़ जाता है। कारों के बहुत दाम हैं क्योंकि आयातित कारों पर 300 फीसदी तक ड्यूटी लगती है। मैंने पूछा कुछ लोगों को ड्यूटी से छूट मिल जाती होगी। 

लेकिन नहीं, यहां सिर्फ संसद सदस्यों को ही यह छूट मिलती है। आखिर जनता के प्रतिनिधियों को जनता से मिलने के लिए काफी घूमना भी तो पड़ता होगा।

रविवार, 24 जुलाई 2016

क्यों बीमार है बांग्लादेश का हिंदू हेडमास्टर



ढाका के पास ही लगभग 18 किलोमीटर दूर नारायणगंज है। ढाका का ही एक हिस्सा। वहां एक स्कूल के हेडमास्टर श्यामल कांति भक्त आजकल बीमार चल रहे हैं। डाक्टरी परीक्षण में बीमारी का कोई कारण पकड़ में नहीं आता। डाक्टर कहते हैं इनके शरीर में कोई गड़बड़ी नहीं है। फिर भी उन्हें भूख नहीं लगती, उल्टियां आती हैं और रात को एक मिनट भी नींद नहीं आती। पहले नारायणगंज में इलाज करवाया फिर ढाका के अस्पताल में भर्ती रहे। अंततः वापस अपने घर लौट आए। 

श्यामल कांति की बीमारी है खौफ जो उनके अंदर घुस गया है। लगभग तीन महीने पहले की बात है, उन्होंने अपने एक छात्र की पिटाई कर दी थी। जैसा कि अमूमन होता है पिटाई करते समय उन्होंने गुस्से में कुछ बोला भी होगा।

नारायणगंज में खबर फैल गई कि हेडमास्टर ने इस्लाम को लेकर कुछ गलत-सलत कहा है। नारायणगंज में जनरल एरशाद की जातीय पार्टी के सांसद सलीम उस्मान की दबंगई चलती है। इस्लाम के कथित अपमान को सह पाने में असमर्थ यह दबंग नेता अपने गुर्गों के साथ श्यामल कांति के स्कूल में गया और उन्हें उनके ही छात्रों के सामने कान पकड़कर बैठने के लिए मजबूर कर दिया। 

श्यामल कांति कान पकड़कर अपने स्कूल के बाहर बैठे रहे और उनके छात्र और भीड़ खड़ी-खड़ी इसका नजारा लेती रही। और आईंदा ऐसा किया तो तुम्हारे परिवार सहित तुम्हें उठाकर बांग्लादेश से बाहर कर दूंगा, जैसा भी कुछ कहा होगा, सलीम उस्मान ने।

एक शिक्षक के लिए इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता। श्यामल कांति ने बिस्तर पकड़ लिया। रात को भी उन्हें लगता कि उस्मान के गुर्गे आ रहे हैं और उनके साथ मारपीट करेंगे। नारायणगंज में किसी का साहस नहीं था कि उस्मान परिवार के खिलाफ आवाज उठाए। लेकिन जिसका कोई नहीं होता उसका मीडिया होता है।

बांग्लादेश का मीडिया कुल मिलाकर अब भी सेकुलर बना हुआ है। उसमें इस घटना की जमकर निंदा हुई। अंततः सरकार जागी और श्यामल कांति के घर पर सुरक्षा दे दी गई। लगभग तीन महीने बाद श्यामल कांति पुलिस सुरक्षा के साथ अपने स्कूल गए। अखबारों वालों के लिए अपने छात्रों के बीच खड़े होकर फोटो खिंचवाई। यह अलग बात है कि फोटोग्राफरों के लाख मुस्कुराने के लिए कहने पर भी श्यामल कांति अपने होठों पर मुस्कुराहट नहीं ला पाए।


बांग्लादेश के अखबार साफ लिखते हैं कि श्यामल कांति पर अत्याचार करना इसलिए संभव हुआ कि वे हिंदू समुदाय से थे। अत्याचार करने वाले को पता था कि यह आदमी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। बस एक दिन चुपचाप बांग्लादेश छोड़कर कहीं दूसरे देश चला जाएगा। 

एक अखबार के संपादक बताते हैं कि बांग्लादेश के हिंदुओं में फिर से एक बार बांग्लादेश छोड़कर भारत चले जाने की आपाधापी मची है। जाने की तैयारी करने वाला पूछने पर कभी नहीं बताएगा, लेकिन संपादक महोदय ने बताया कि उनके कुछ परिचित भी इस बारे में विचार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग पश्चिम बंगाल जाने की सोचते हैं। क्योंकि असम जाने पर आसमान से गिरकर खजूर पर लटकने जैसी बात हो जाती है।

हिंदुओं को बांग्लादेश में अवामी लीग का पिट्ठू समझा जाता है। करीब दस फीसदी हिंदुओं का समर्थन अवामी लीग को एक ठोस आधार प्रदान करता है। इसी कारण हर चुनाव के पहले और बाद में हिंदू बहुल इलाकों में धमकियों का दौर चलता है।

 विपक्षी यह कोशिश करते हैं कि हिंदू वोट ही न दे पाएं क्योंकि उनके वोट सौ फीसदी अवामी लीग के ही पक्ष में पड़ने की संभावना रहती है। बांग्लादेश में जब भी कोई बड़ी घटना घटती है तो छोटे गांवों और शहरों के हिंदू डर से मां काली को याद करने लगते हैं। जमाते इस्लामी की छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिविर अपनी वहशियाना हिंसा के लिए कुख्यात है। आम लोगों की कौन कहे, वे लोग सीधे पुलिस के सिपाहियों को ही अपना लक्ष्य बनाते हैं।

शेख हसीना इस स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह पुलिस, खुफिया एजेंसियों और सशस्त्र बलों पर निर्भर हो गई हैं। पुलिस को अत्यधिक अधिकार मिले हुए हैं। 

ग्लादेश की रैब (रैपिड एक्शन फोर्स) का गठन सिर्फ आतंकवाद और नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने के लिए किया गया था। रैब में सेना के लोग भी भर्ती हैं। इस तरह बांग्लादेश के सिविल प्रशासन में सेना की भूमिका को संस्थागत रूप दे दिया गया है। सरकार और उसके मंत्री रैब तथा अन्य सुरक्षा एजेंसियों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म कराने के लिए करते हैं। यहां तक कि बांग्लादेश में यह एक मुख्य राजनीतिक मुद्दा बनकर उभरा है।

राजनीतिक विरोधी का अगवा कर उसका कत्ल करवा देने को वहां गुम करवा देना कहते हैं। गुम सत्ताधारी दल के पास एक बहुत बड़ा हथियार है। जब राजनेता गंदे कामों में लिप्त हों तो अफसर पीछे क्यों रहेंगे। रैब जैसी एजेंसियों के अधिकारी भी अपने स्वार्थ के लिए धनी लोगों को गुम करवा देते हैं।


बांग्लादेश की राजनीति में इतनी अधिक आपसी कड़वाहट है कि दोनों बेगमें सार्वजनिक स्थानों पर या तो एक साथ कभी आती नहीं। और यदि आती भी हैं तो एक दूसरे को अभिवादन तक नहीं करतीं।

यहां तक कि पिछले दिनों जब विपक्षी खालिदा जिया के एक बेटे की मृत्यु हो गई तो सांत्वना देने के लिए शेख हसीना उनके घर जाना चाहती थीं। लेकिन बेगम जिया ने घर के बाहर तक आई हुई शेख हसीना को वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्हीं की देखादेखी उनके नीचे के नेता लोग करते हैं। बांग्लादेश में नाम के लिए लोकतंत्र है लेकिन लोकतंत्र की आत्मा कहीं नहीं है। चुनाव होते हैं लेकिन निर्वाचन आयोग स्वतंत्र नहीं है। सरकार के इशारे पर चलता है, इसलिए स्वतंत्र चुनाव हो नहीं पाते।

न्यायपालिका में सुनवाई का प्रहसन होता है लेकिन फैसला वही आता है जो सरकार चाहती है। जजों की नियुक्ति आदि के नियम ऐसे हैं कि जज सरकार के मौखिक निर्देशों का पालन करने को ही अपने कैरियर के लिए अच्छा समझते हैं। अदालतों में साधारण लोगों के मामले सालों तक लंबित रहते हैं जबकि राजनीतिक मामलों पर फैसला काफी तेजी से होता है यदि इसके लिए सरकार की ओर से निर्देश आया हुआ हो तो। 

मौखिक निर्देश देते-देते सरकार की ऐसी आदत हो गई है कि अब वह अदालतों के लिए सार्वजनिक रूप से भी बयान जारी करती है। गुलशन की घटना के बाद सरकार ने फरमान जारी कर दिया कि अदालतें आतंकवाद संबंधी मामलों में जमानत देने के समय सावधानी बरतें।

रविवार, 17 जुलाई 2016

संगीत और कला का शहर विएना

हर यूरोपीय शहर की तरह विएना में भी ट्राम और ट्रेन का जाल बिछा है। दूसरे शहरों की तरह यहां भी एक ही टिकट से आप ट्राम, ट्रेन, सबवे और बस में यात्रा कर सकते हैं। शोनब्रुन पैलेस ही यहां देखने लायक है, जैसे दिल्ली में लाल किला। यह भी हैब्सबर्ग साम्राज्य के सम्राटों की आरामगाह था।

विएना में निश्चित स्थान पर ऑपेरा के पोस्टर लगे होते हैं
 यहां यह रिवाज है कि आरामगाह के तौर पर जो महल बनवाए जाते थे उनमें एक गार्डेन और यह चिड़ियाखाना (टियरगार्टन) भी होता था। शोनब्रुन में भी चिड़ियाखाना है जिसे देखने के लिए टिकट है। मजे की बात है कि महल की देखरेख एक सरकारी कंपनी के जिम्मे है और वह कंपनी अपना सारा खर्च खुद ही निकालती है सरकार से कोई मदद नहीं लेती। टिकट से अच्छी खासी आमदनी हो जाती है।

विएना खुला-खुला है। प्राग ही तरह बंद-बंद नहीं। वैसे भी धूप निकलने के कारण सबकुछ ज्यादा अच्छा लग रहा है। पता नहीं क्यों यहां जापानी सैलानियों की भरमार है।

बिग बस के बारे में पहले नहीं सुना था। यह कई पर्यटन के लिए प्रसिद्ध शहरों में चलती है। इसमें आप जहां चाहे उतर जाएं और फिर घूमघाम कर अगली बिग बस में चढ़ जाएं। साथ में कई भाषाओं (हिंदी सहित) वाला ऑडियो गाइड दिया जाता है जिसे कान से लगाने पर आपको सारा विवरण मिलता रहता है।

विएना कला का शहर है। संगीत सम्राट बीथोवन और मोजार्ट यहीं के थे। मनोविज्ञान को अपने सिद्धांतों से उलट-पलट कर देने वाले फ्रायड भी वियेना के ही थे। शहर म्यूजियमों से भरा है। सड़कों पर निश्चित स्थान पर पोस्टर लगे हैं, ऑपेरा और थियेटर के होने वाले शो के।

पैलेस में भी एक थियेटर है जिसमें शाम को शो होने वाला है। गार्डेन में कला के अनुपम नमूनों के रूप में मूर्तियां भरी पड़ी हैं। ये मूर्तियां ग्रीक मिथक, इतिहास और संस्कृति पर आधारित हैं। इनमें होमर के महाकाव्य इलियाड, ओडिसी आदि की कहानियां शामिल हैं। ब्रुटस की भी एक मूर्ति लगी है जिसमें एक हाथ में वह लुक्रेशिया को थामे हुए है। 

शेक्सपीयर की रचना रेप आफ लुक्रेश में यह प्रकरण आता है। ईशा से 500 साल पहले की इस कहानी में प्रकरण है कि लुक्रेशिया का रोम के राजा के पुत्र सेक्सटस ने बलात्कार कर लिया था। लुक्रेशिया ने इसके बारे में अपने पति को बताने के बाद छूरा घोंपकर आत्महत्या कर ली। 

विएना में एक व्यक्ति संगीतकार मोजार्ट की मूर्ति बनकर खड़ा है। मोटार्ट विएना का ही था।
बाद में इसी घटना को केंद्रित करते हुए राजा के विरुद्ध विद्रोह हुआ और तख्तापलट हो गया। एक मूर्ति कृषि, विवाह और मृत्यु की देवी सेरिस की है। यह पुनरुत्पादन या उपजाऊपन का प्रतिनिधित्व करती है। पुनरुत्पादन की पूजा करने का हमारी संस्कृति में भी रिवाज है। 

कुल मिलाकर इस बगीचे में आप एक-एक मूर्ति के पीछे के इतिहास में जाएं तो यूनानी सभ्यता, संस्कृति और परंपरा के बारे में आपको अच्छी जानकारी हो जाएगी। विएना में सड़कों के किनारे भी सुंदर लाल और पीले ट्यूलिप खिले हुए हैं। 

इन्हें देखकर हमारे यहां के एक सज्जन की याद आती है जो सुबह-सुबह उचक-उचक कर फूल तोड़ते हैं और इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि अंतिम फूल भी तोड़ लिया जाए। पता नहीं फूल का जन्म पूजा में चढ़ने के लिए हुआ है या भंवरों को आकर्षित करने के लिए।

बर्लिन और न्यूरमबर्ग में परिवार के बीच रहने के कारण यूरोप के पारिवारिक मूल्यों के बारे में जानकारी हासिल हुई। अब तक जो जानकारी थी वह सिनेमा और उपन्यासों पर आधारित थी। न्यूरमबर्ग में मेरी मेजबान मारिया इग्लिच अपने दूसरे पति के साथ रहती हैं। 

दूसरा पति, बच्चे की गर्लफ्रेंड आदि ऐसे शब्द हैं जिनका हम भारतीय खुलकर उच्चारण नहीं करते। लेकिन मारिया बताती हैं कि उसके तीनों बच्चे उसके पहले पति से हैं। बच्चे अब साथ नहीं रहते क्योंकि बड़े हो गए हैं। क्या उनकी शादी हो गई है। नहीं। 

हमें बड़ा अजीब लगता है कि शादी भी नहीं हुई और बच्चे अलग रहने लग गए वो भी लड़के ही नहीं लड़कियां भी। मारिया के पति स्टीफन अंग्रेजी समझते हैं लेकिन बोल नहीं पाते। वे भी अपने लड़के की तस्वीर दिखाते हैं साथ ही उसकी मैक्सिकन गर्लफ्रेंड की भी। 

स्टीफन और मारिया दोनों के माता-पिता भी अलग रहते हैं। यानी तीन पीढ़ियां अलग-अलग रहती हैं। और यह यूरोप में बिल्कुल सामान्य बात है। मारिया और उसके पति पूरे परिवार के एकत्र होने के मौके की तस्वीर भी दिखाते हैं।

न्यूरमबर्ग में मारिया के घर में रहने के दौरान एक मित्र की याद बरबस चली आती थी। उनके घर में एक जैसे कप-प्लेट और चम्मच बिरले ही मिलते थे। वे बिना किसी संकोच के बताते थे कि ये विभिन्न होटलों से चुराए हुए कप-प्लेट और चम्मच हैं इसलिए इनका सेट नहीं है। यह हमारे जातीय चरित्र पर एक टिप्पणी है। 

कई भारतीय होटलों में चेकआउट के समय होटल का कर्मचारी कमरे में जाकर यह देखता है कि कोई चीज चोरी तो नहीं हुई। मारिया अपना पूरा घर मेरे जिम्मे सौंपकर चाबियां मुझे थमाकर अपने दफ्तर चली गई थीं। कह गई थीं कि वह रात दस बजे आएंगी और चाहूं तो फ्रिज से कुछ भी निकालकर खाता रहूं। 

घर में किसी कमरे में कोई ताला-वाला नहीं लगा था। यह कोई अपवाद नहीं बल्कि यूरोप के लिए एक सामान्य बात थी। क्लेश आफ सिविलाइजेशन के लेखक ने और एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था ट्रस्ट। इस पुस्तक में दिखाया गया है कि जो संस्कृतियां उच्च स्तर के विश्वास पर आधारित हैं उनका अधिक विकास हुआ है।

मारिया का दफ्तर भी शनिवार को बंद रहता है। इस दिन नाश्ते पर काफी सारी बातचीत हुई। सुबह-सुबह मोटा सा 72 पृष्ठों का अखबार भी आ गया जिसकी कीमत 2.90 यूरो थी। यह शनिवार और रविवार दोनों दिनों के लिए था। यानी रविवार को अखबार नहीं निकलता। 

इस बात में तो कोई शक ही नहीं है कि दक्षिण एशिया में अखबार जितनी कम कीमत में मिलते हैं दुनिया में और कहीं नहीं मिलते। लेकिन क्या यह भी सही है कि जो इलाका जितना अधिक अशांत और गड़बड़ी वाला होता है वहां उतने ही अधिक अखबार निकलते हैं और उतनी ही कम कीमत में। 

जर्मन भाषा में रोमन अक्षरों के उच्चारण अंग्रेजी से थोड़े भिन्न हैं। अखबार को साइटुंग कहा जाता है लेकिन इस शब्द में स के लिए जेड वर्ण का प्रयोग किया जाता है। जेड को स पढ़ते हैं, लेकिन कई तरह के स होते हैं। सी की बजाय के का प्रयोग ही ज्यादा होता है। जर्मन में जैसे लिखा जाता है वैसे ही पढ़ा जाता है। 

अंग्रेजी में जिसे बर्गर पढ़ा जाता है जर्मन में उसीको बुर्गर पढ़ा जाएगा। यानी कहीं यू है तो अक्सर उसका उच्चारण भी उ होता है, जैसे साइटुंग में। कल्चर को कुलटुर लिखते हैं और यही पढ़ते हैं। जे को य और वाई को ज पढ़ा जाता है। लेकिन जर्मन लोगों को गर्व करते सुना जा सकता है कि जर्मन भाषा सीखना बहुत कठिन है।

रविवार, 10 जुलाई 2016

चार घंटे यूरोपीय ट्रेन में

ट्रेन छूटने के समय से पांच मिनट पहले आई और समय पर छूट गई। आने और जाने के समय कोई ईंजन की सीटी की आवाज नहीं। पश्चिम में आवाज से काफी परहेज किया जाता है। इस ट्रेन को दो कंपनियां सीडी (चेस्के ड्राही) और ओबीबी (यह विएना की है) मिलकर चलाती हैं। ट्रेन अपने नंबर से जानी जाती है। इस ट्रेन का नाम 75 है। 

कौन सा फर्स्ट क्लास, कौन सा सेकेंड क्लास और कौन सा रेस्तरां सब पहले से फिक्स है। मेरी सीट के ऊपर नंबर के साथ स्क्रीन पर लिखा है यह प्राग से विएना के लिए है। दूसरे यात्रियों की तरह मैंने भी अपनी जैकेट उतारकर खूंटी पर टांग दी। सीट के नीचे ही छोटा कूड़ा गिराने का स्थान है। 

पैर से उसे खोलना पड़ता है। बड़ा कूड़ा टॉयलेट के पास के कूड़ेदान में गिराया जा सकता है। आधी सीटें खाली हैं। परसों जिस बस में न्यूरमबर्ग से प्राहा या प्राग आया था उसमें लगभग 100 की क्षमता थी लेकिन यात्री दस ही थे।

डर था कि शायद कंडक्टर क्रेडिट कार्ड मांगेगी जो कि बर्लिन में खो गया। लेकिन उसने केवल पासपोर्ट मांगा। इस ट्रेन में क्रेडिट कार्ड की जरूरत नहीं होती। बर्लिन से न्यूरमबर्ग आते समय क्रेडिट कार्ड मांगा था (वह जर्मनी की राजकीय कंपनी डीबी थी)। 

वे लोग पासपोर्ट को नहीं मानते। यह उनका नियम है। ऑनलाइन टिकट पर ही साफ लिखा था। मैंने कहा कि मुझे पता है, लेकिन अब खो गया तो क्या करेंगे, मैं तो आपके इनफॉर्मेशन पर पूछकर चढ़ा हूं। कंडक्टर समझी नहीं। पास बैठी युवती ने जर्मन में बताया तो समझी और मान गई। 

बर्लिन से न्यूरेमबर्ग के बीच तीन कंडक्टरों ने टिकट चेक किया था। सभी किसी एयरहोस्टेस की तरह नम्र व्यवहार वाली थीं। हाथ में पकड़ी मशीन से टिकट का बारकोड स्कैन कर लेती थीं, लेकिन बार-बार नहीं।

यह फर्स्ट क्लास है। फर्स्ट क्लास में आधे लीटर की पानी की बोतल और अखबार फ्री मिलता है। अंग्रेजी अखबार इनके पास नहीं है। वाई-फाई भी नहीं है हालांकि दूसरी ट्रेनों में है। कहते हैं इसमें भी हो जाएगा। कुछ सीटें उन यात्रियों के लिए हैं जो 10 साल से नीचे के बच्चों के साथ यात्रा कर रहे होते हैं। 

ये सीटें हमेशा के लिए निश्चित हैं। वहां उनके खेलने के लिए एक गेम दिया जाता है और साथ में खेल के नियम भी। बच्चों के लिए सिनेमा का प्रावधान भी है। अक्षम यात्रियों के लिए व्हीलचेयर ले जाने लायक अलग से सीट बना दी जाती है। फर्स्ट क्लास में एक बिजनेस क्लास भी है जिसमें एक पेय और पचास क्राउन (2 यूरो) का कूपन दिया जाता है, जो इच्छा हो मंगा लो। 

पांव के लिए ज्यादा स्पेस। ट्रेन 155 की गति से चल रही है। सामने स्क्रीन पर सबकुछ आता रहता है, आप किस ट्रेन में किस वैगन में बैठे हैं, ट्रेन की गति, आने वाले स्टेशन (स्टेशनों) का समय और नाम। बाहर आज धूप निकली है। शायद फोटोग्राफी अच्छी कर पाना संभव हो। आप ट्रेन में साइकिल भी ले जा सकते हैं। साइकिल और प्राम रखने के लिए प्रावधान हैं।

रेस्तरां के स्टाफ आर्डर लेने आते हैं और आप खाने के सामान का मेनू देखकर आर्डर दे सकते हैं। यानी हवाई यात्रा की तरह। ट्रेन में एक-दो डिब्बे शांत डिब्बे होते हैं उसमें बैठने वालों को अपने मोबाइल को स्विच ऑफ करना पड़ता है, फोन करने या रिसीव करने से परहेज करना पड़ता है, म्यूजिक नहीं बजा सकते हेड फोन लगाकर भी और बातें धीमी आवाज में करनी होती है। वैसे भी यहां हर कोई धीमी आवाज में ही बातें करता है।

बाहर सरसों के खेत हैं और फूल खिले हुए हैं। क्रिसमस ट्री बहुतायत में उगे हुए हैं जिन्हें हमारे यहां काफी प्रीमियम दिया जाता है। कहीं भी मनुष्य या अन्य कोई भी जीव जंतु दिखाई नहीं देता। 

पास बैठी कैलिफोर्निया की महिला ने कहा कि उसे यात्रा में दिक्कत होती है, कोई खाली सीट हो तो बताना। वह शायद सोएगी। होस्ट (वेटर) ने कहा कि मैं देखकर बताता हूं। थोड़ी देर बाद महिला अपने पति के साथ दूसरी किसी सीट पर चली गई।

11.47 बज गए और पहला स्टेशन पार्डुबाइस आ गया। यह कोई औद्योगिक शहर लगता है। छोटा-सा। प्राग की आबादी 12 लाख है। अभी चेक गणराज्य ही चल रहा है। क्योंकि स्टेशन के लिए हालविना नाडराजी लिखा हुआ आ रहा है।

गार्ड ने हल्की सी सीटी बजाई, ऑटोमैटिक दरवाजे बंद होने का पीं-पीं पीं-पीं संकेत हुआ और गाड़ी 11.49 पर चल पड़ी। प्लेटफॉर्म खाली पड़े हैं। बाहर धूप निकल आई है। अगला स्टेशन 12.22 पर सेस्का ट्रेबोवा है। बाहर का दृश्य उबाने वाला है। खेत दिख रहे हैं लेकिन खेतिहर कहीं नहीं। गति वही 160। 

रास्ते के स्टेशनों पर कोई झंडी दिखाने वाला नहीं खड़ा रहता। दरअसल कोई नहीं रहता, न स्टाफ, न यात्री। हरियाली लगभग आ गई है। लेकिन कहीं भी फूल वाले वृक्ष नहीं हैं। हां कुछ छोटे वृक्ष हैं सफेद फूलों वाले। वनस्पति की विभिन्नता हमारे यहां की तरह नहीं दिखाई देती। 

असम में तो इस समय लाल गुलमोहर और बैंगनी रंग के एजार फूल, और पीले अमलतास के फूल खिल गए होंगे। यहां लाल रंग को मिस कर रहा हूं। कुछ दिन रहना पड़ जाए तो नजारा काफी उबाऊ हो जाएगा। कुछ खेत जुते हुए हैं, बुवाई के लिए तैयार। कुछ में छोटी पौध उग आई है।

यहां शहर के पार्कों में भी छोटी दूब या घास के बीच सुंदर पीले-पीले फूल उगे हुए होते हैं। कोई घास पर नहीं चलता इसलिए वे बने रहते हैं। ...वाह, अब तक की यात्रा में जंतु के नाम पर अभी-अभी कुछ बकरियां चरती हुई दिखाई दीं। लेकिन चार-पांच ही। 

यह किसी गांव या कस्बे को पार कर रहे हैं लेकिन कहीं इंसान नाम का जीव दिखाई नहीं दिया। पहली बार एक रेलवे फाटक दिखाई दिया जो ट्रेन के आने से पहले अपने-आप बंद हो जाता है। छोटे से गांव के सर्विस रोड के लिए यह काफी है।

रेलवे ट्रैक थोड़ी देर के लिए एक छोटी-सी नदी के साथ-साथ गुजर रही है। एक और चीज यहां आपको नहीं मिलेगी वह है बिखरा हुआ प्लास्टिक। शहरों में सिगरेट के टुकड़े हर कहीं बिखरे मिल जाते हैं, क्योंकि सिगरेट पीने के बाद कूड़ेदान में गिराना मना है। कोई नहीं गिराता। 

कल रास्ते किनारे की एक दुकान में बर्गर खाने के बाद एक अन्य व्यक्ति (शायद अरब या तुर्क) ने बड़ी तत्परता से कहा यहां – यहां। यानी इस कूड़ेदान में कागज गिरा दें। क्या मेरे भारतीय होने के कारण उसे डर था कि मैं नीचे ही गिरा दूंगा। उसने मुझे न-मस्ते भी कहा। मैंने कुछ नहीं कहा था, शायद किसी शो का दलाल होगा।

 हमारे यहां हम किसी अनजान व्यक्ति के साथ ज्यादा बात नहीं करते। यहां किसी अनजान व्यक्ति से आंखें मिलाते ही - जैसे होटल की रिसेप्शनिस्ट, या लिफ्ट में पहले से आ रहा कोई व्यक्ति, या रेस्तरां में आपकी मेज पर पहले से बैठा हुआ कोई ग्राहक - गर्मजोशी के साथ मुस्कुराकर हलो कहते हैं। ऐसा नहीं करना अच्छा नहीं माना जाता।

एक स्टेशन पार हुआ है, दूर स्टेशन के पास तीन चार लोग दिखाई दिए और एक महिला प्राम पर अपने बच्चे को ले जा रही है।

हमारे लोगों को आश्चर्य होगा कि आदमी कहां छिपे रहते हैं। न्यूरमबर्ग के उपनगर न्यूरमबर्ग स्टाइन, जहां मैं ठहरा था, में जब रात आठ-नौ बजे बाहर का नजारा लेने के लिए निकला तो सचमुच एक भी आदमी दिखाई नहीं दिया। मैं एक तरह से घबराकर वापस अपने फ्लैट में लौट आया। 

उपनगर में एक इटालवी रेस्तरां ला कुलटुरा दिखाई दिया था, जिसके बारे में मेरी होस्ट ने बता दिया था कि वह महंगा होगा। ठंड में अकेले घूमना और रास्ता भटक जाएं तो पूछने के लिए कोई नहीं, सचमुच घबराहट होती है। 

लो 12.23 हो गए और चेस्का ट्रेबोवा आ गया। गाड़ी एक मिनट विलंब से आई है। और 12.24 पर चल पड़ी। अगला स्टेशन ब्रनो 1.22 पर है। बाहर प्लास्टिक का कूड़ा गिराने की जगह दिखाई दी है। तीन-चार मशीनें उस पर काम कर रही हैं। पता नहीं क्या काम।

यह कोई अच्छा-खासा शहर पार हो रहा है। एक हाइपरमार्केट पार हुआ है। शहर के बाहर गांव शुरू होता है। खेतीबाड़ी की मशीनें हर घर के बाहर पड़ी दिखाई दे रही हैं। हर घर के साथ छोटी-सी बगीची है जिसमें शायद सब्जी उगाते होंगे। 

सर्दी से बचाने के लिए और एक खास तापमान पर रखने के लिए ग्रीन हाउस जैसा बनाया रहता है। जैसे हमारे यहां ठंडक बनाए रखने के लिए कोई-कोई ऐसा करता है। पटरी के साथ-साथ एक मानव निर्मित छोटी सी नहर चल रही है। अच्छी धूप निकल आई है। मैंने थोड़ी फोटोग्राफी कर ली।

एक और रेलवे फाटक पार हुआ। छोटे से शहर के बीच। यानी यहां भी रेलवे फाटक हैं। मेरे एक मित्र ने बताया था कि यहां रेलवे फाटक नहीं होते। हालांकि सभी स्वचालित हैं। अरे हां, पार हो रहे स्टेशन के बाहर लाल टोपी पहने स्टेशन का कर्मचारी दिखाई दिया है।

उसने शायद सबकुछ ठीक होने का सिगनल दिया होगा। लेकिन हाथ में झंडी-वंडी नहीं थी। हमारी बोगी अंतिम है इसलिए दिखाई नहीं देता कि वह क्या करता है। वह बस वापस अंदर जाता हुआ दिखाई देता है।

ब्रनो भी आखिर 1.23 पर आ ही गया। यह स्टेशन काफी पुराना और साधारण है। कम से कम बाहर से तो हमारे यहां के जैसा ही। स्टेशन का मकान भी जराजीर्ण है। बाहर शहर में नई शैली की बहुमंजिला इमारते हैं। पारंपरिक शैली की टेराकोटा टाइल्स की तिकोनी छत वाले मकान यहां गायब हो गए। 


सबलोग शांत बैठे हैं। पास वाले दंपति धीमी आवाज में बात कर रहे हैं और पुस्तक पढ़ रहे हैं। आगे की सीट पर कोरियाई बच्चे कलम कागज से पहेली पूरी करने में व्यस्त हैं। एक बच्ची डायरी लिख रही है। बाहर कोई दिलचस्प दृश्य दिखाई नहीं दे रहा। न ही कोई आदमी। यदि कॉफी का ऑर्डर देता हूं तो तीन-चार यूरो खर्च हो जाएंगे। विएना आने में पूरे दो घंटे बाकी हैं। इससे अच्छा है मैं भी थोड़ा सो लेता हूं।

रविवार, 3 जुलाई 2016

प्राहा – ओल्ड इज गोल्ड

अभी-अभी Czech Republic की राजधानी Prag या Praha में उतरा हूं। बस, जिसमें कि किसी विमान से ज्यादा ही सुविधाएं थीं, 3.18 की जगह 3.05 पर ही अपने गंतव्य पर पहुंच गई। उतरते ही एक दलाल आया और मुद्रा बदलने के लिए कान में कह गया। पता लगा कि Czech Republic में Crown चलता है। 

एक Euro 25 क्राउन के बराबर होता है। जो भी हो, बस अड्डा सूनसान लगा, किसी चर्च जैसा स्थापत्य था। टैक्सी की खोज में चर्च के अंदर गया और सीढ़ियों से नीचे उतरा तो नीचे पूरा एक मार्केट था। दरअसल यह बस अड्डा नहीं रेलवे स्टेशन था। यूरोप में मैंने बस अड्डा कहीं नहीं देखा। बसें रेलवे के साथ तालमेल रखकर चलती हैं। 

टिकट भी स्टेशन पर मिलता है। टैक्सी वाले ने लिस्ट देखकर कहा 28 यूरो लगेंगे। मैंने कहा क्यों भई पिछली बार तो कम लिए थे। एक दूसरे ड्राइवर ने जो ज्यादा अच्छी अंग्रेजी जानता था कहा नहीं फिक्स रेट है। मैं मान गया तो एक टैक्सी वाले ने बैग अपनी टैक्सी में डाल ली। बैठने पर कहा 28 यूरो। मैंने कहा ठीक है। उसने कहा निकालो। मैंने कहा एडवांस।..हां। ...ठीक है ले लो। जो भी हो होटल पहुंच गया। होटल में भी एडवांस पेमेंट का रिवाज है।

Czech लोग ऊंची कदकाठी के होते हैं। काफी लंबे। समझ लीजिए गोरे पठान। हमारी फिल्मों में किसी गोरे कप्तान या अफसर का रोल करने के लिए यहां से से किसी ड्राइवर को ले जाना बुरा खय़ाल नहीं होगा। होटल अच्छा है, लेकिन यहां वैसे नहीं है कि कोई बेयरा आपका सामान लेकर आपके कमरे में पहुंचा देगा। इतने लोग नहीं हैं इनके पास।

Germany में मुख्य स्टेशन को हाफ्टबानहॉफ कहते हैं, Czech भाषा में भी एक नाम है अभी याद नहीं आ रहा। चेक भाषा में क्या कहते हैं याद रखना पड़ता है क्योंकि तभी आप उस ट्राम स्टॉप पर उतर पाएंगे जहां रेल स्टेशन है। Tram में सिर्फ Czech भाषा में सभी नाम आते हैं और घोषणाएं आती हैं।


Europe में भाषाओं का बड़ा गड़बड़झाला है। स्टेशन पर चेक और जर्मन भाषा तो काफी है लेकिन अंग्रेजी बस कहीं-कहीं। जर्मनी में काम चलाने के लिए सीखा कि प्लेटफॉर्म को क्या कहते हैं, ट्रेन नेम को क्या कहते हैं यहां Czech गणराज्य में अब फिर से सीखना पड़ रहा है।

अंत में इन्फॉर्मेशन में जाकर पुष्टि भी कर ली कि मैंने ठीक ही समझा है न। उन्होंने बताया कि 20 मिनट पहले प्लेटफॉर्म की घोषणा होगी। स्टेशन कम से कम चार मंजिलों वाला है। सभी मंजिलें नीचे की ओर है। बर्लिन में भी ऐसा था। किसी एयरपोर्ट से भी बढ़कर।

Praha में अंग्रेजी बोलने वाले युवा बड़ी संख्या में दिखाई पड़े। आसपास के लोग तो German बोल लेते हैं और शायद बाकी के बाहर के लोगों को अंग्रेजी में ही बात करनी पड़ती होगी। Germany में ऐसा नहीं था। हालांकि यहां और वहां लगभग सभी लोग अंग्रेजी बोल और समझ लेते हैं।

किसी ने ठीक ही कहा था कि Europe में हम भारतीयों के लिए लघुशंका बड़ी समस्या हो जाती है। यहां कहीं भी आलिंगनबद्ध, चुंबन लेते हुए जोड़े दिख जाएंगे लेकिन लघुशंका के लिए पेशाबघऱ या उसका संकेत नहीं दिखाई देता। हैं भी बहुत कम। 

होटल में पानी पीते समय ही सोचा था कि आगे मुश्किल होगी। हुई भी। स्टेशन की चार मंजिलों पर बहुत खोजने के बाद एक आलीशान यूरीनल दिखाई दिया। वहां ऑटोमेटिक मशीन में एक यूरो का सिक्का डालने पर आगे जाने का रास्ता खुलता है। 

अमूमन Germany और Praha में पचास सेंट लगते हैं। यहां सार्वजनिक स्थानों पर जीवित व्यक्ति का राष्ट्रीय नायकों की मूर्ति बनकर खड़ा होना या बैठना एक आर्ट है। मैंने ऐसी ही एक मूर्ति के साथ फोटो खिंचवाई।

Czech गणराज्य में कम्युनिस्ट शासन की छाप तीन चीजों में आज भी दिखाई देती है – एक, ट्राम के किराए में तरह-तरह की छूट में। जैसे गर्भवती महिला के लिए या बुजुर्गों के लिए किराया कम है। इसी तरह छूट की कई श्रेणियां हैं। Germany में ऐसा कुछ नहीं था। इससे ऑटोमैटिक टिकट मशीन पर लिखावट काफी उलझाव वाली हो जाती है क्योंकि बटन के पास छोटे से स्थान पर कई तरह का किराया जैसे-तैसे ठूस-ठास कर लिखा रहता है। 

दो, वहां मुख्य चौराहे का नाम अब भी रिवोल्यूशनस्का नामेस्ती है। नामेस्ती Czech भाषा में चौराहे को कहते हैं। नए प्रशासन की तारीफ की जानी चाहिए कि उसने इस चौराहे का नाम बदलने के बारे में नहीं सोचा। तीन, कहीं-कहीं अब भी रूसी भाषा में लिखावट दिखाई दे जाती है। उसे बदला नहीं गया है। communist शासन के खात्मे के बाद रूसी यहां से चले गए थे। 

लेकिन करीब दो दशकों बाद वे फिर से Prag और Czech गणराज्य में अच्छे अवसरों की तलाश में आने लगे हैं। प्राग और इसके आसपास रूसी स्कूल, अखबार और व्यापार फल-फूल रहे हैं। दरअसल रूसियों की संख्या सिर्फ Czech गणराज्य में ही नहीं पूर्वी यूरोप के Bulgaria, Slovakia, लाटविया, एस्टोनिया जैसे देशों में दिन पर दिन बढ़ रही है। प्राग में पढ़ने वाली वलेरिया नाम की उस होटल प्रबंधन की छात्रा के वाकये में रूस की सच्चाई साफ झलकती है। 

हमारे यहां से जब कोई बाहर पढ़ने जाता है तो माता-पिता कहते हैं बेटा जल्दी वापस आ जाना। लेकिन जब वलेरिया रूस के Siberia से Prag के लिए रवाना हो रही थी तो उसके माता-पिता ने उससे कहा था – बेटी वापस मत लौटना। यूरोपियन संघ का सदस्य होने के कारण Czech गणराज्य में एक तरह की गतिशीलता तो है ही।


Prag यूरोप का काफी पुराना शहर है। इसके दो भाग हैं एक पुराना शहर और दूसरा नया शहर। मजेदार बात यह है कि जो नया शहर है वह भी 14वीं शताब्दी का बना हुआ है। पुराना शहर इससे और एक सदी पुराना है। जब गाइड कहती है कि यह पब है जो डेढ़ सौ साल पुराना है और Prag के सभी कलाकार यहां बीयर पीने आया करते थे और आज भी आते हैं तो प्राग की ऐतिहासिकता हमारी आंखों को चकाचौंध कर देती है।

लेकिन पुराना कहते ही पुरानी दिल्ली की तस्वीर मन में लाने की जरूरत नहीं जहां पुरानी हवेलियां टूट रही हैं और गलियां संकरी हैं। निःसंदेह Prag में सड़कें आज के शहरों जैसी चौड़ी नहीं हैं लेकिन फिर भी उन्हें गली नहीं कहा जा सकता। Czech लोगों ने अपने शहर को संजोकर रखा है।