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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

रविवार, 24 जुलाई 2016

क्यों बीमार है बांग्लादेश का हिंदू हेडमास्टर



ढाका के पास ही लगभग 18 किलोमीटर दूर नारायणगंज है। ढाका का ही एक हिस्सा। वहां एक स्कूल के हेडमास्टर श्यामल कांति भक्त आजकल बीमार चल रहे हैं। डाक्टरी परीक्षण में बीमारी का कोई कारण पकड़ में नहीं आता। डाक्टर कहते हैं इनके शरीर में कोई गड़बड़ी नहीं है। फिर भी उन्हें भूख नहीं लगती, उल्टियां आती हैं और रात को एक मिनट भी नींद नहीं आती। पहले नारायणगंज में इलाज करवाया फिर ढाका के अस्पताल में भर्ती रहे। अंततः वापस अपने घर लौट आए। 

श्यामल कांति की बीमारी है खौफ जो उनके अंदर घुस गया है। लगभग तीन महीने पहले की बात है, उन्होंने अपने एक छात्र की पिटाई कर दी थी। जैसा कि अमूमन होता है पिटाई करते समय उन्होंने गुस्से में कुछ बोला भी होगा।

नारायणगंज में खबर फैल गई कि हेडमास्टर ने इस्लाम को लेकर कुछ गलत-सलत कहा है। नारायणगंज में जनरल एरशाद की जातीय पार्टी के सांसद सलीम उस्मान की दबंगई चलती है। इस्लाम के कथित अपमान को सह पाने में असमर्थ यह दबंग नेता अपने गुर्गों के साथ श्यामल कांति के स्कूल में गया और उन्हें उनके ही छात्रों के सामने कान पकड़कर बैठने के लिए मजबूर कर दिया। 

श्यामल कांति कान पकड़कर अपने स्कूल के बाहर बैठे रहे और उनके छात्र और भीड़ खड़ी-खड़ी इसका नजारा लेती रही। और आईंदा ऐसा किया तो तुम्हारे परिवार सहित तुम्हें उठाकर बांग्लादेश से बाहर कर दूंगा, जैसा भी कुछ कहा होगा, सलीम उस्मान ने।

एक शिक्षक के लिए इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता। श्यामल कांति ने बिस्तर पकड़ लिया। रात को भी उन्हें लगता कि उस्मान के गुर्गे आ रहे हैं और उनके साथ मारपीट करेंगे। नारायणगंज में किसी का साहस नहीं था कि उस्मान परिवार के खिलाफ आवाज उठाए। लेकिन जिसका कोई नहीं होता उसका मीडिया होता है।

बांग्लादेश का मीडिया कुल मिलाकर अब भी सेकुलर बना हुआ है। उसमें इस घटना की जमकर निंदा हुई। अंततः सरकार जागी और श्यामल कांति के घर पर सुरक्षा दे दी गई। लगभग तीन महीने बाद श्यामल कांति पुलिस सुरक्षा के साथ अपने स्कूल गए। अखबारों वालों के लिए अपने छात्रों के बीच खड़े होकर फोटो खिंचवाई। यह अलग बात है कि फोटोग्राफरों के लाख मुस्कुराने के लिए कहने पर भी श्यामल कांति अपने होठों पर मुस्कुराहट नहीं ला पाए।


बांग्लादेश के अखबार साफ लिखते हैं कि श्यामल कांति पर अत्याचार करना इसलिए संभव हुआ कि वे हिंदू समुदाय से थे। अत्याचार करने वाले को पता था कि यह आदमी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। बस एक दिन चुपचाप बांग्लादेश छोड़कर कहीं दूसरे देश चला जाएगा। 

एक अखबार के संपादक बताते हैं कि बांग्लादेश के हिंदुओं में फिर से एक बार बांग्लादेश छोड़कर भारत चले जाने की आपाधापी मची है। जाने की तैयारी करने वाला पूछने पर कभी नहीं बताएगा, लेकिन संपादक महोदय ने बताया कि उनके कुछ परिचित भी इस बारे में विचार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग पश्चिम बंगाल जाने की सोचते हैं। क्योंकि असम जाने पर आसमान से गिरकर खजूर पर लटकने जैसी बात हो जाती है।

हिंदुओं को बांग्लादेश में अवामी लीग का पिट्ठू समझा जाता है। करीब दस फीसदी हिंदुओं का समर्थन अवामी लीग को एक ठोस आधार प्रदान करता है। इसी कारण हर चुनाव के पहले और बाद में हिंदू बहुल इलाकों में धमकियों का दौर चलता है।

 विपक्षी यह कोशिश करते हैं कि हिंदू वोट ही न दे पाएं क्योंकि उनके वोट सौ फीसदी अवामी लीग के ही पक्ष में पड़ने की संभावना रहती है। बांग्लादेश में जब भी कोई बड़ी घटना घटती है तो छोटे गांवों और शहरों के हिंदू डर से मां काली को याद करने लगते हैं। जमाते इस्लामी की छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिविर अपनी वहशियाना हिंसा के लिए कुख्यात है। आम लोगों की कौन कहे, वे लोग सीधे पुलिस के सिपाहियों को ही अपना लक्ष्य बनाते हैं।

शेख हसीना इस स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह पुलिस, खुफिया एजेंसियों और सशस्त्र बलों पर निर्भर हो गई हैं। पुलिस को अत्यधिक अधिकार मिले हुए हैं। 

ग्लादेश की रैब (रैपिड एक्शन फोर्स) का गठन सिर्फ आतंकवाद और नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने के लिए किया गया था। रैब में सेना के लोग भी भर्ती हैं। इस तरह बांग्लादेश के सिविल प्रशासन में सेना की भूमिका को संस्थागत रूप दे दिया गया है। सरकार और उसके मंत्री रैब तथा अन्य सुरक्षा एजेंसियों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म कराने के लिए करते हैं। यहां तक कि बांग्लादेश में यह एक मुख्य राजनीतिक मुद्दा बनकर उभरा है।

राजनीतिक विरोधी का अगवा कर उसका कत्ल करवा देने को वहां गुम करवा देना कहते हैं। गुम सत्ताधारी दल के पास एक बहुत बड़ा हथियार है। जब राजनेता गंदे कामों में लिप्त हों तो अफसर पीछे क्यों रहेंगे। रैब जैसी एजेंसियों के अधिकारी भी अपने स्वार्थ के लिए धनी लोगों को गुम करवा देते हैं।


बांग्लादेश की राजनीति में इतनी अधिक आपसी कड़वाहट है कि दोनों बेगमें सार्वजनिक स्थानों पर या तो एक साथ कभी आती नहीं। और यदि आती भी हैं तो एक दूसरे को अभिवादन तक नहीं करतीं।

यहां तक कि पिछले दिनों जब विपक्षी खालिदा जिया के एक बेटे की मृत्यु हो गई तो सांत्वना देने के लिए शेख हसीना उनके घर जाना चाहती थीं। लेकिन बेगम जिया ने घर के बाहर तक आई हुई शेख हसीना को वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्हीं की देखादेखी उनके नीचे के नेता लोग करते हैं। बांग्लादेश में नाम के लिए लोकतंत्र है लेकिन लोकतंत्र की आत्मा कहीं नहीं है। चुनाव होते हैं लेकिन निर्वाचन आयोग स्वतंत्र नहीं है। सरकार के इशारे पर चलता है, इसलिए स्वतंत्र चुनाव हो नहीं पाते।

न्यायपालिका में सुनवाई का प्रहसन होता है लेकिन फैसला वही आता है जो सरकार चाहती है। जजों की नियुक्ति आदि के नियम ऐसे हैं कि जज सरकार के मौखिक निर्देशों का पालन करने को ही अपने कैरियर के लिए अच्छा समझते हैं। अदालतों में साधारण लोगों के मामले सालों तक लंबित रहते हैं जबकि राजनीतिक मामलों पर फैसला काफी तेजी से होता है यदि इसके लिए सरकार की ओर से निर्देश आया हुआ हो तो। 

मौखिक निर्देश देते-देते सरकार की ऐसी आदत हो गई है कि अब वह अदालतों के लिए सार्वजनिक रूप से भी बयान जारी करती है। गुलशन की घटना के बाद सरकार ने फरमान जारी कर दिया कि अदालतें आतंकवाद संबंधी मामलों में जमानत देने के समय सावधानी बरतें।

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