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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

मंगलवार, 31 जुलाई 2012

कोकराझार से पूर्वोत्तर को समझें

अचानक असम के कोकराझार में हिंसा का दावानल क्यों फैल गया? पिछली 19 जुलाई को दो मुसलिम छात्र नेताओं पर गोलियां चलाकर हमला किया गया, लेकिन वे बच गए। शायद इसकी प्रतिक्रिया के रूप में ही दूसरे दिन पूर्व उग्रवादी गुट बीएलटी (बोडो लिबरेशन टाइगर्स) के चार कैडरों को मार डाला गया। इलाके में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के लिए इतना ही काफी था। जबकि राज्य सरकार को अच्छी तरह मालूम था कि बोडो स्वायत्त इलाके में सुरक्षा बलों की भारी कमी है और यदि कैसी भी हिंसा फैल जाए, तो उसे रोकना वहां उपलब्ध सुरक्षा बलों के लिए असंभव है। यही हुआ भी।

सवाल है कि यह तनाव कितने दिनों से वहां पनप रहा था। मौजूदा तनाव अलग बोडो राज्य की मांग के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ है, जिसे लेकर 2003 में अस्तित्व में आए स्वायत्तशासी बीटीएडी (बोडो क्षेत्रीय स्वायत्तशासी जिले) इलाके में विभिन्न समुदाय गुटों में बंटे हुए हैं। सभी बोडो संगठन और राजनीतिक पार्टियां जहां बोडोलैंड के नाम से अलग राज्य की मांग कर रही हैं, वहीं विभिन्न गैर-बोडो समुदाय गैर-बोडो सुरक्षा मंच के बैनर तले संगठित होकर हाल के करीब तीन महीनों से बोडोलैंड की मांग का विरोध करने लगे हैं।

असम के जनजाति बहुल इलाकों में ऐसा बहुत कम देखा गया है कि वर्चस्व वाली जनजाति के खिलाफ कोई दूसरा समुदाय इस तरह मुखर रूप से उठ खड़ा हो। इससे पहले हमने राभा हासंग नामक स्वायत्तशासी इलाके की मांग करने वाले राभा समुदाय के खिलाफ भी लोगों को एकजुट होते देखा है। अलग डिमाराजी राज्य की मांग करने वाले डिमासा समुदाय के खिलाफ भी विभिन्न गैर-डिमासा समुदायों का आंदोलन डिमा हासाउ जिले में हो चुका है। मगर इस तरह का घटनाक्रम नई परिघटना है।

बोडो क्षेत्रीय प्रशासनिक जिलों में गैर-बोडो समुदायों द्वारा स्वायत्तशासी प्रशासन के विरुद्ध भेदभाव का आरोप लगाना, और बोडोलैंड की मांग का विरोध करना, वहां विभिन्न बोडो संगठनों को नागवार गुजरा है। और इसके कारण विगत कुछ दिनों से वहां बोडो और मुसलिम आबादी के बीच तनाव बढ़ रहा था।

कहा जा रहा है कि बीटीएडी इलाके में फैली हिंसा दो समुदायों के बीच फैली हिंसा है। यह बात सच है और नहीं भी। सच इस मायने में है कि ताजा हिंसा मुख्यतः बोडो और मुसलमान समुदायों के बीच ही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी समुदायों के साथ बोडो समुदाय के रिश्ते पर्याप्त रूप से मधुर हैं। इस समय कोच राजवंशी और आदिवासी समुदायों के गांवों पर हमला नहीं किया गया। इसके कई कारण हो सकते हैं।

लेकिन इतना दावे के साथ कहा जा सकता है कि बीटीएडी में कोई भी गैर बोडो समुदाय अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करता। बीटीएडी में पड़ने वाले एक अन्य जिले उदालगुड़ी में ही 2008 में इसी तरह की हिंसा फैली थी, जिसमें अल्पसंख्यक और बोडो समुदाय आमने-सामने थे। लेकिन वहां अन्य समुदाय भी आज तक भय के माहौल में जी रहे हैं। इसका प्रमाण है विभिन्न समुदायों का धीरे-धीरे आसपास के शोणितपुर, दरंग, कामरूप आदि जिलों में जाकर बस जाना।

बोडो स्वायत्तशासी क्षेत्र में इस समय जो समस्या दिखाई दे रही है, वह सिर्फ वहां की समस्या नहीं है। बल्कि इस समस्या में पूर्वोत्तर के अधिकतर हिंसाग्रस्त इलाकों को दर्पण की तरह देखा जा सकता है। यह समस्या है, एक-एक समुदाय द्वारा यह सोचना कि उनके लिए अलग प्रशासनिक इकाई नहीं होने पर उनका विकास संभव नहीं है। साथ ही यह भी कि किसी प्रशासनिक इकाई में, भले वह राज्य हो या स्वायत्तशासी क्षेत्र, वहां के बहुसंख्यक समुदाय को ही रहने का अधिकार है और सरकारी संसाधन सिर्फ उसी समुदाय के विकास के लिए खर्च किए जाने चाहिए। समान अधिकार मांगने को तो बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

2003 में बीटीएडी के गठन के लिए हुई संधि में साफ कहा गया है कि स्वायत्तशासी इकाई का गठन बोडो समुदाय के सामाजिक तथा सर्वांगीण विकास के लिए किया जा रहा है। इस तरह इस बात को मान्यता दे दी गई कि किसी एक प्रशासनिक इकाई का गठन किसी एक खास समुदाय के विकास के लिए किया जा सकता है। यह भारतीय संविधान के उस सिद्धांत के खिलाफ है, जो शासन द्वारा किसी भी समुदाय के खिलाफ भेदभाव किए जाने का विरोध करता है। पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न समुदाय जब तक इस भाव को नहीं त्यागते कि किसी दूसरे समुदाय के साथ मिल-जुलकर रहना संभव नहीं है, तब तक बोडो आबादी वाले इलाकों में ही नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर के अधिकतर हिंसा जर्जर इलाकों में स्थायी शांति संभव नहीं है।

4 टिप्‍पणियां:

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  2. 'कोकराझार से पूर्वोत्तर को समझे' को पढ़ने के बाद वहां हुई या हो रही हिंसा की वजह तलाशने के लिए अन्य किसी सोर्स की खोज करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। श्री रिंगानियां सफल युवा पत्रकार है और उन्हे किसी भी घटना की तह तक जा कर रिपोर्ट तैयार करने की पूरी महारत हासिल है। असम सहित पूर्वोत्तर राज्यों की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक मुद्दों पर उनकी पैनी नजर रहती है और अपनी कलम से इन मुद्दों को अपने ब्लॉग पर बराबर प्रकाशित करते रहते हैं।

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