मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

रविवार, 7 अगस्त 2016

वो उदास थे या लेखक तुम खुद उदास थे


ढाका में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात रहती है। यहां की पुलिस काफी चुस्त-दुरुत दिखती है। पुलिस वाले बंदूकों से लैस रहते हैं। हमारे होटल के बाहर भी विशेष रूप से पुलिस तैनात थी क्योंकि इस होटल में ज्यादाततर विदेशी रुकते हैं। 

होटल का नाम है होटल 71। 71 का मतलब है 1971 का मुक्ति युद्ध या स्वाधीनता संग्राम। बांग्लादेश में स्वाधीनता संग्राम को बात बात में याद किया जाता है। लोग अपने ईमेल आईडी अमूमन इस तरह बनाते हैं। जैसे – विनोद71, विनोद21 या विनोद52।

71 का मतलब तो हमने ऊपर बता ही दिया है, 21 का मतलब हुआ 21 फरवरी 1952 जिस दिन बांग्ला भाषा के लिए आंदोलन शुरू हुआ था और जो अंततः स्वाधीनता युद्ध में बदल गया। 52 भी 1952 को याद करते हुए रखा जाता है। टीवी चैनल में से भी एक का नाम एकुइशे चैनल है। जिन्ना की बांग्लादेश पर उर्दू थोपने की मूर्खता के कारण ही पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए।

हमारे होटल की पूरी थीम ही स्वाधीनता संग्राम पर थी। इसकी सजावट में पश्चिमी पाकिस्तान के साथ हुए गृह युद्ध की याद दिलाने वाली कलाकृतियाँ थीं। कमरों के नाम देखिए – लाल-सबुज (यानी लाल-हरा, बांग्लादेश के झंडे के रंग), बिजय। रेस्तरांओं के नाम स्वाधिकार, बिजय स्मरणी।

ढाका में ईद के एक-दो दिन पहले से ही छुट्टियाँ शुरू हो जाती हैं और लोग पूरी तरह दफ्तरों में आने लगे इसमें एक सप्ताह तक लग जाता है। गारमेंट फैक्टरियाँ पूरे दस दिनों के लिए पूरी तरह बंद रहती हैं। वृहस्पति, शुक्रवार और शनिवार को तो ढाका पूरी तरह सुनसान लग रहा था। 

रविवार को अखबारों में तस्वीरों के साथ खबरें छपीं कि देखिए लोग घरों से वापस आने लगे हैं। चूंकि ईद से पहले जाने वालों और अब ईद के बाद आने वालों की भीड़ काफी तगड़ी होती है इसलिए अखबारों में खबर छपना भी लाजिमी है। वैसे भी ईद के बाद खुमारी मिटाते हुए रिपोर्टर और क्या लिखेंगे।




मैंने ढाकेश्वरी मंदिर जाने के लिए एक रिक्शा ठीक किया। और उससे पूछ लिया कि पांच सौ टाका का छुट्टा हो जाएगा न। उसने कहा छुट्टा तो नहीं है। लेकिन गाहक छोड़ना भी नहीं चाहता था। हम दोनों ने ही सोचा देखा जाएगा। 

ढाकेश्वरी मंदिर हमारे होटल से 4.2 किलोमीटर दूर था। ढाका में इतनी दूर रिक्शे पर जाना आम बात है। वो भी तीन-तीन सवारियों को लादकर। लोग सजी-धजी पोशाकों में और लड़कियां होठों पर बेतरतीब-सी लिपस्टिक लगाए शायद अपने आत्तीय (आत्मीय) स्वजनों (रिश्तेदारों) के यहां ईद के आंमत्रण जा रहे थे। सभी रिक्शे में।

ढाकेश्वरी मंदिर एक ऐसे इलाके में है जिसे किसी भी दृष्टि से खास नहीं कहा जा सकता। बख्शी बागान। एक संकरी गली के बाहर रास्ते को रोकते हुए बैंच पर पुलिस वाले हथियार लिए बैठे थे तो मैंने समझ लिया कि यहीं मंदिर होगा। ढाका का नाम ढाकेश्वरी पर पड़ा या ढाकेश्वरी का नाम ढाका पर, इस पर मतभेद हैं। 

कहते हैं ढाक (बंगाल में प्रचलित ढोल जैसा वाद्य) की आवाज जितने इलाके में पहुंचती थी उस सारे इलाके का नाम ढाका पड़ा। ढाका की प्राचीनता की तुलना में कोलकाता बिल्कुल बच्चा है। कहते हैं मंदिर की स्थापना बारहवीं सदी में हुई थी। गली में जाते हुए हमें पुलिस वालों ने कुछ नहीं कहा, जबकि वे एक अन्य दंपति से काफी पूछताछ कर रहे थे। वे हिंदू बंगाली सज्जन कह रहे थे हम तो जमालपुर से आए हैं, आदि आदि।

मंदिर बिल्कुल छोटा-सा है। चूने और गारे से बना हुआ। कहते हैं इस मंदिर को 12वीं सदी के सेन वंश के राजा बिल्लाल सेन ने बनवाया। मंदिर के बाहर चारों ओर अट्टालिकाएं खड़ी हैं जिनके कारण दूर से कौन कहे, गली के बाहर से भी मंदिर दिखाई नहीं देता। मंदिर कई बार टूटा-फूटा और इस समय जो ढांचा खड़ा हुआ है कहते हैं वह ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंट ने बनवाया। 

कुछ विद्वान कहते हैं बनवाने का मतलब है मरम्मत करवाना। गर्भगृह के बाहर एक बड़ी छत और नीचे बैठने का स्थान बना हुआ है, जो बिल्कुल नया और चमाचम है। मंदिर से सटा हुआ एक तालाब है जैसाकि हर पुराने मंदिर के पास हुआ करता था। वहीं एक लाल बिल्डिंग है जिसमें हिंदू नेताओं का काफी आना-जाना होता है। ढाकेश्वरी न सिर्फ बांग्लादेश में हिंदू आस्था का केंद्र है बल्कि हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित लोगों का जमावड़ा भी वहीं होता है।

ढाकेश्वरी मंदिर को राष्ट्रीय मंदिर का ओहदा प्राप्त है। ढाका के एक इलाके रमना में स्थित काली मंदिर पहले सबसे बड़ा मंदिर हुआ करता था। लेकिन 1971 में उस मंदिर को आतताइयों का शिकार होना पड़ा। उसके बाद से ढाकेश्वरी ही बांग्लादेश में हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। 

मंदिर के अंदर भी सुरक्षाकर्मी थे। गर्भगृह के बाहर कोई कथा चल रही थी। गर्भगृह में दुर्गा की एक बहुत छोटी-सी पीली धातु की मूर्ति स्थापित थी। दुर्गा मंदिर के पास ही चतुर्भुज विष्णु का मंदिर है उसी गर्भगृह में। दुर्गा की आठ सौ साल पुरानी असली प्रतिमा यहां इस मंदिर में नहीं है। उसे कोलकाता के कुमारटुली के एक मंदिर में ले जाकर वहीं स्थापित कर दिया गया है। 
यहां के गर्भगृह में जो स्थापित है वह असली विग्रह की प्रतिकृति है। लोग – पुरुष और महिलाएं और युवा - चुपचाप और उदास से बैठे थे। क्या वे सचमुच उदास थे या उदासी हमारे मन के अंदर थी और हमें हर कोई उदास दिखाई दे रहा था। हिंदू समुदाय के लिए माइनॉरिटी शब्द का उच्चारण अब तक कई बार सुन चुका था। इसके लिए हमारे कान अभ्यस्त नहीं थे। हिंदू बहुसंख्यक देश से आए एक व्यक्ति को यह अजीब लगता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें