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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

लक्ष्मी, स्वास्थ्य और ज्ञान




दीपावली का त्योहार आ गया जिस दिन लोग महालक्ष्मी की पूजा कर समृद्धि की कामना करते हैं। यह कम अर्थपूर्ण नहीं है कि जिस दिन को महालक्ष्मी की पूजा करने के लिए चुना गया है उससे दो दिन पहले धनवंतरि की पूजा की जाती है। धन्वंतरि स्वास्थ्य के देवता है। धन्वंतरि और लक्ष्मी दोनों ही समुद्र मंथन से निकले थे। सफल जीवन के लिए लक्ष्मी की जितनी आवश्यकता होती है स्वास्थ्य की उससे कम नहीं।



लेकिन पता नहीं क्यों हमारे देश में धीरे-धीरे स्वास्थ्य का महत्त्व कम होता गया। बल्कि यह मान लिया गया है कि जो लक्ष्मी की साधना करेगा उसे अच्छे स्वास्थ्य, ज्ञान, कला और विद्या हर चीज से नाता तोड़ लेना होगा। उसे एकांगी जीवन जीना होगा। इसी जीवन दर्शन को समेटते हुए कोई कोई कहता है कि लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ नहीं रह सकतीं। भारत जैसे देश में जहां के धर्मों में जीवन के हर पहलू को समेटा गया है ऐसा चिंतन कब से हावी हो गया यह विचारणीय प्रश्न है।

पश्चिम में जो धनी लोग हैं उनके जीवन का अध्ययन करें तो आप पाएंगे कि उनमें से अधिकतर स्वास्थ्य की साधना को भी अपना अच्छा खासा समय देते हैं। वहां हर सफल व्यक्ति, भले वह व्यवसायी हो या राजनीतिज्ञ या कलाकार, जीवन में कम-से-कम एक पुस्तक तो अवश्य लिखता है। और पढ़ना तो चलता ही रहता है।

भारत में यह मान लिया गया है कि यदि कोई व्यक्ति धन की साधना में व्यस्त है तो उसके पास स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए वक्त नहीं रहेगा। उसका वजन बढ़ता चलता जाएगा। उसके पास पुस्तक पढ़ने का वक्त नहीं रहेगा। इसे प्रोफेसरों को शगल समझा जाता है। इसके उलट जो लोग खेल या योग-व्यायाम जैसी गतिविधियों से जुड़े हुए हैं वे अधिक धनी नहीं होंगे यह मान लिया गया है।

जो लेखक हैं, विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक हैं वे बस जैसे-तैसे अपनी गृहस्थी चलाते रहें यह हमारे यहां की एक मान्य छवि है। हिंदी के महान साहित्यकारों का नाम लें तो उनमें से अधिकतर की माली हालत ठीक नहीं थी, धनी तो उनमें से कोई नगण्य थे।

नई प्रौद्योगिकी के आने के बाद स्थिति बदली है। सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित कंपनियों में काम करने वाले इंजीनियरों का वेतन लाखों में है। पश्चिम के समृद्ध देशों के साथ भारत इंटरनेट के जरिए जुड़ गया है। ज्ञान के माध्यम से भी कोई समृद्ध हो सकता है यह अवधारणा अब लोगों की समझ में आ रही है।

ज्ञान आधारित उद्योग एक नई श्रेणी बनकर उभरा है। नित नए ऐप बन रहे हैं जिनका स्मार्टफोन और पर्सनल कंप्यूटरों पर उपयोग होता है। नई दवाओं का उद्योग सबसे अधिक मुनाफा देने वाला उद्योग है। पश्चिम के देशों ने किसी समय शारीरिक श्रम के माध्यम से समृद्धि हासिल की। अब उसने शारीरिक श्रम वाले उद्योगों को तीसरी दुनिया के देशों के हवाले कर दिया है। वे स्वयं अब सिर्फ नए उत्पादों की संकल्पना तैयार करते हैं। वास्तविक उत्पादन चीन, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, मलेशिया जैसे देशों में होता है।

भारत में दोनों ही प्रकार के उद्योगों में शीर्ष पर पहुंचने की संभावना है। सूचना प्रौद्योगिकी में बंगलोर दुनिया के नक्शे पर एक जाना-पहचाना नाम बनकर उभरा है। दुनिया के बहुत बड़े हिस्से में भारतीयों ने अपनी मेधा के बल पर शीर्ष पर पहुंचकर दिखाया है। दूसरी ओर, हमारे यहां करोड़ों भारतीय शारीरिक श्रम करके भी समृद्धि लाने के लिए तैयार हैं। आज के विश्व बाजार में भारत दुनिया भर के उत्पादकों के लिए कारखाने लगाने के लिए एक आदर्श देश साबित हो सकता है।

लक्ष्मी को कैद करके रखने और उसे फिर से मुक्त कराने के बहुत से मिथक हमारे ग्रंथों में उपलब्ध हैं। आज के दौर में भी हम कह सकते हैं कि हमारे यहां लक्ष्मी को गलत राजनीति ने कैद कर रखा है। राजनीतिक जकड़बंदी से इसे मुक्त करा लिया जाए तो हमारे यहां भी पश्चिम जैसी समृद्धि आ सकती है। भौतिक समृद्धि के पीछे-पीछे सुस्वास्थ्य और ज्ञान भी स्वयं ही चला आएगा बशर्ते कि हम इसके प्रति जागरूक हों।
                               

2 टिप्‍पणियां:

  1. भारत में समृद्धि और ज्ञान की कोई कमी नहीं है, बस कमी है तो वह है स्वास्थ की l ज्ञान के लिए शिक्षा, धन के लिए श्रम भी हमारे यहाँ प्रचुर है, पर हम कही न कही समृद्धि की दौर में पिछड़ रहे है l शायद लाल फीता शाही और सामंती विचारधारा ने हमारी लक्ष्मी तो कैद कर रखा है l

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