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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार और वहां की सेना, आईएसआई व जिहादी तत्वों के बीच हमें भेद करते हुए चलना होगा

पाकिस्तान सरकार ने मौलाना अजहर मसूद को गृहबंदी बना लिया है। इस बात का पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान दुनिया भर में जोर-शोर से प्रचार कर रहा है। मसूद जैशे मोहम्मद का नेता हैजो पाकिस्तानी के जिहादी संगठनों में से एक है। इस बात की सूचना है कि लश्करे तोइबा के एक बड़े नेता लाखवी को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। हालांकि इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हुई है।
पाकिस्तान के इन कदमों को भारत संदेह की नजरों से देख रहा है। कहीं यह अमरीकी दबाव के कारण दिखाने की कार्रवाई तो नहीं है। कहीं यह नजरबंदी उस तरह तो नहीं है जिस तरह परमाणु वैज्ञानिक खान की हुई थी। तब नजरबंदी के कारण उस परमाणु तस्कर की पहुंच को पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान तक ही सीमित कर दिया गया था। मसूद की नजरबंदी उसके कार्यकलाप पर बंधन लगाने के लिए है या उसे सुरक्षा देने के लिए यह संदेह पैदा होना भी लाजिमी है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी ने न्यूयार्क टाइम्स में एक लेख लिखकर यह कहा है कि पाकिस्तान स्वयं ही जिहादी ताकतों के निशाने पर है। एक हद तक यह बात सही है। पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार पर आईएसआई और वहां के सैन्य प्रतिष्ठान की नजरें हैं। वह किसी न किसी बहाने से अपना दबदबा कायम करने की कोशिश में है। यदि ऐसा नहीं होने दिया गया तो इस सरकार को भी उसी तरह जाना पड़ सकता है जिस तरह नवाज शरीफ को जाना पड़ा था।
कारगिल युद्ध और मुंबई कांड में यह समानता तो है ही कि दोनों ही घटनाओं में भारत की खुफिया एजेंसियों की नाकामयाबी खुलकर सामने आ गई थी। दोनों में ही यह साबित हो गया था कि समय पर कार्रवाई की जाती तो भारत का काफी नुकसान बच सकता था। लेकिन इसके अलावा इनमें यह भी समानता है कि दोनों ही उस समय हुईं जब भारत-पाकिस्तान के संबंध एक नया मोड़ ले रहे थे। कारगिल युद्ध से ठीक पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रसिद्ध लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद जल्दी ही कारगिल पर आक्रमण हो गया।
बाद में अमरीका के बीचबचाव के कारण युद्ध समाप्त हुआ। लेकिन नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार के हाथ से सत्ता निकल गई। इसी तरह मुंबई कांड के पहले पाकिस्तान के निर्वाचित राष्ट्रपति जरदारी के वक्तव्यों से सुलह-सफाई का एक नया वातावरण बन रहा था। संदेह किया जा रहा है कि मुंबई कांड के पीछे भी असली मकसद पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार को सत्ताच्युत करना हो सकता है।
निर्वाचित सरकार भारत और अमरीका के दबाव में यदि जिहादी सरगनाओं को गिरफ्तार करने की कोशिश करती है तो सेना और नागरिक प्रशासन के बीच संघर्ष शुरू हो जाएगा। यदि ऐसा नहीं करती है तो उसकी कमजोरी खुलकर सामने आ जाएगी, साथ ही अमरीकी दबाव के सामने उसका टिकना मुश्किल हो जाएगा। जो भी हो, मुंबई कांड का एक उद्देश्य पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार को कमजोर करना निश्चित रूप से होगा।
इसलिए पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार और इसके निर्वाचित राष्ट्रपित को चाहिए कि जिहादी तत्त्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। यह कार्रवाई सिर्फ भारत और अमरीका को दिखाने के लिए नहीं होनी चाहिए, बल्कि इस मानसिकता के साथ होनी चाहिए कि इन तत्त्वों से उसे ही सबसे ज्यादा खतरा है।
पाकिस्तान के लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ा खतरा आज यह है कि वहां के जिहादी तत्त्व कहीं सेना को अपने पक्ष में न कर ले। इस संदर्भ में भारत सहित विश्व बिरादरी का भी कर्त्तव्य बनता है कि वह निर्वाचित सरकार को कमजोर न होने दे। वह इसे सहारा दे और इसके माध्यम से ही यह सुनिश्चित करे कि वहां जिहादी तत्त्वों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

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