अंततः केजरीवाल फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। यह दिल्ली या देश के लिए अच्छा होगा या बुरा। कुछ भी हो केजरीवाल जुनूनी तो हैं ही। एक समय उन्हें लगता था राइट टु इंफार्मेशन ही सबकुछ है। इससे भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा। फिर उन्हें लगा कि लोकपाल आने पर सबकुछ ठीक हो जाएगा। फिर लगने लगा कि सत्ता हासिल किए बिना कुछ भी संभव नहीं है। वे किसी भी चीज के पीछे जुनूनी बनकर लग जाते हैं। जब तक उन्हें नहीं लगता कि लक्ष्य हासिल करने के लिए यह सही औजार नहीं है तब तक वे उसे छोड़ते नहीं हैं। इसी तरह नया करने की उनमें बुद्धि और सामर्थ्य है। टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के पहले किसी को इस पद की ताकत का पता नहीं था। हमें लगता है मुख्यमंत्री पद की ताकत का भी अभी तक किसी ने पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया है। एक धारणा बन गई है कि भारत में सरकारी कर्मचारियों से काम करवाना आसान नहीं है, न ही यहां घूसखोरी को खत्म करना आसान है। हो सकता है केजरीवाल हमें मुख्यमंत्री की असली ताकत का एहसास करवा दे। आप समर्थन करें या विरोध - आईआईटी खड़गपुर का यह पूर्व छात्र बुद्धिमान तो है ही। आईआईटी के.गी.पी. का टेंपो हाई है।
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