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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

रविवार, 6 सितंबर 2009

कहाँ से शुरू करूं

लंबा व्यवधान पड़ गया। ब्लॉग भी क्या जुनून की तरह है? केवल जुनूनी होने से कैसे काम चलेगा। क्या कारण होते हैं जब लिखना बिल्कुल रुक जाता है? आंतरिक सूखा पड़ता होगा या फिर आती होगी कोई आंतरिक आर्थिक मंदी।


इन दिनों सीटी बस से यात्रा कम कर दी। अभी-अभी दस किलोमीटर तक धूल और धुआँ खाकर आ रहा हूँ। सीटी बस में कुछ गुण हैं और कुछ अवगुण, उसी तरह स्कूटर के अपने गुण-अवगुण हैं।
हिंदी को लेकर असम में एक वातावरण बनाया जा रहा है। आखिर यह किसका दोष है। शायद ज्यादा मीडिया होने का यह खामियाजा समाज को भुगतना पड़ता है। याद आते हैं वे दिन जब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का जहाज ऊपरी असम में किसी गांव में गिर पड़ा था और हमें दूसरे दिन अखबार से पता चला। आज का दिन होता तो क्या होता? चैनल वालों को दो दिनों का काम मिल जाता। मीडिया के प्रति एक अंदरूनी वितृष्णा क्यों जन्म ले रही है?

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