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Journalist and writer, Writes on Northeast India, Bangladesh, Myanmar

रविवार, 27 नवंबर 2016

बात पते की - आयकर विभाग का कैंटीन भी कैशलेस नहीं है


जहांपनाह आज शुरू से ही दो-दो हाथ करने के मूड में थे। दरबार में आते ही वे सीधे बीरबल की ओर मुखातिब हुए। Birbal को आभास हो गया कि नोटबंदी पर उनके रुख से बादशाह नाराज हैं। Akbar ने Birbal से सीधा सवाल पूछा – आखिर इतने पड़े इंकलाबी कदम से भी तुम खुश नहीं हो, तुम्हारे तर्क क्या हैं? क्या तुम्हारे पास भी ढेर सारा काला धन है?

Birbal – गुस्ताखी माफ हो जहांपनाह। कम-से-कम आपसे मैं इस सवाल को अच्छे तरीके से पूछे जाने की उम्मीद करता था। सरकार के किसी कदम का विरोध कर दो तो विरोध करने वाले को ही अपराधी घोषित कर देना – ऐसे वातावरण में तो फिर कोई चर्चा संभव ही नहीं है। इस तरह वही बहस करता है जिसके पास ठोस तर्क नहीं होते और जो अपने कदमों को सुधारने में और जनता का भला करने में विश्वास नहीं रखता।

Akbar – चलो दूसरी बातों को छोड़ देते हैं क्योंकि उससे दरबार का वक्त बरबाद होगा। बस इतना बता दो कि क्या इस कदम से हम cashless economy की ओर आगे नहीं बढ़ेंगे।

Birbal – जहांपनाह, cashless economy की ओर बढ़ने के लिए क्रांति की जरूरत नहीं होती। यह काम सरकार चाहती तो शासन में आने के पहले दिन से ही शुरू कर सकती थी और आज भी देर नहीं हुई है, आज भी शुरुआत हो सकती है। सरकार खुद एक बहुत बड़ी खरीदार है। मैं आपको ऐसे दस स्थान गिना सकता हूं जो या तो सीधे सरकार के दायरे में हैं या फिर सरकार नियंत्रित कंपनियों के नियंत्रण में हैं। ऐसे स्थानों पर सरकार चाहे तो debit card से पेमेंट की व्यवस्था कर सकती है। यह तो अच्छा है कि आज देश में शायद ही कोई बंदा बचा हुआ है जिसके पास debit card न हो, या मोबाइल फोन न हो। इस डेबिट कार्ड की मदद से सरकार यदि अपना पेमेंट ले तो कल्पना कीजिए कि कितने बड़े स्तर पर कार्ड से पेमेंट को बढ़ावा मिलेगा।

उदाहरण के लिए, रेलवे टिकट, पोस्ट आफिस, सरकारी अस्पताल, सरकारी फार्मेसी, सरकार नियंत्रित होटल, पर्यटन स्थलों के टिकट काउंटर, टोल गेट, सरकारी राशन की दुकानें, सरकारी बसें, नगरपालिका का टैक्स, पेट्रोल पंप, रसोई गैस, कोर्ट के वेंडर, सरकारी दफ्तरों, सचिवालयों, विधानसभाओं, आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि के कैंटीन, सैनिक छावनियों के अंदर चलने वाली दुकानों - इन स्थानों पर स्वाइप मशीनें लगाना अनिवार्य किया जा सकता है। रेलवे के वेंडरों को आप चाहें तो बाध्य कर सकते हैं कि उन्हें स्वाइप मशीनें रखनी होंगी। यदि सचमुच वित्त मंत्री की मंशा cashless economy की दिशा में कुछ करने की होती तो वे ये सब काम करतें, न कि व्यापारियों को नसीहत देते कि तुम लोग कैशलेस व्यापार करना शुरू कर दो, और न ही बैंकों को टारगेट देते कि इतने लाख करोड़ का लेनदेन अब कैश से cashless हो जाना चाहिए। सच पूछिए तो इस सरकार में सबसे खराब कार्य वित्त मंत्री महोदय का ही रहा है। भले प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के कारण उनकी असफलताओं पर लोग अभी कुछ बोल नहीं रहे।

यदि एक सर्वेक्षण किया जाए तो शायद income tax department के किसी कैंटीन में भी card swipe करने की सुविधा नहीं मिलेगी। तो फिर आप किस मुंह से दूसरों को नसीहत दे सकते हैं।


Akbar – बात तो तूने पते की कही है Birbal।